Advertisement

कवि ने स्वयं को प्रवासी क्यों कहा है?


नागार्जुन प्राय: घूमते रहते थे। वे फक्कड़ थे घुमक्कड़ थे। राजनीति और घुमक्कड़ी के शौक के कारण प्राय: अपने घर से दूर रहते थे इसलिए उन्होंने स्वयं को प्रवासी कहा है। साहित्य में भी उन्हें ‘यात्री’ के नाम से जाना जाता है।
371 Views

Advertisement
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू:
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा:
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्‌टी का गुण धर्म:
फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्‌टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा का थिरकन का!

‘दंतुरित मुसकान’ क्या-क्या कर सकती थी?

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उंगलियां माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होतीं जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी तुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!

कवि ने फसल के द्वारा किन-किन में आपसी सहयोग का भाव व्यक्त किया है?

First 1 2 3 Last
Advertisement