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कवि ने फसल के द्वारा किन-किन में आपसी सहयोग का भाव व्यक्त किया है?


कवि ने फसल के द्वारा मनुष्य के शारीरिक बल और परिश्रम तथा प्रकृति में छिपी अथाह ऊर्जा के आपसी सहयोग का भाव व्यक्त किया है। जब मनुष्य की मेहनत और प्रकृति का सहयोग आपस में मिल जाते हैं तो फसल उत्पन्न होती है।
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निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू:
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा:
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्‌टी का गुण धर्म:
फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्‌टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा का थिरकन का!

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उंगलियां माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होतीं जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी तुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!

‘दंतुरित मुसकान’ क्या-क्या कर सकती थी?

कवि ने स्वयं को प्रवासी क्यों कहा है?

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