Advertisement

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उंगलियां माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होतीं जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी तुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!


प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज भाग-2 से अवतरित किया गया है। इसे नागार्जुन के द्‌वारा रचित कविता ‘यह दंतुरित मुसकान’ से लिया गया है। कवि लंबे समय तक कहीं बाहर रहने के पश्चात् वापिस अपने घर लौटा था और उसने अपने बच्चे के मुँह में जो छोटे-छोटे दाँतों की सुंदर चमक से शोभायमान मुसकान को देखा था। इससे उसे अपार प्रसन्नता हुई थी।

व्याख्या- कवि कहता है कि हे सुंदर दाँतों वाले मेरे बच्चे, यदि तुम्हारी माँ तुम्हारे और मेरे बीच माध्यम न बनी होती तो मैं कभी भी तुम्हें और तुम्हारी सुंदर पुष्ट को देख न पाता और न ही तुम्हें जान पाता। तुम धन्य हो और तुम्हारी माँ भी धन्य है। मैं तुम दोनों का आभारी हूँ। मैं तो लंबे समय से कहीं बाहर था इसलिए मैं तो तुम्हारे लिए कोई दूसरा हूँ, पराया हूँ। मेरे प्यारे बच्चे, मैं तुम्हारे लिए मेहमान की तरह हूँ इसलिए तुम्हारा मेरे साथ कोई संबंध नहीं रहा, तुम्हारे लिए मैं अनजाना-सा हूँ। मेरी अनुपस्थिति में तुम्हारी माँ ही आत्मीयतापूर्वक तुम्हारा पालन-पोषण करती रही। तुम्हें अपना प्यार प्रदान करती रही। वही तुम्हारा पंचामृत से पालन-पोषण करती रही। तुम मुझे देख कर हैरान से थे और मेरी ओर कनखियों से देख रहे थे। जब कभी अचानक तुम्हारी और मेरी दृष्टि मिल जाती थी तो मुझे तुम्हारे मुँह में तुम्हारे चमकते हुए सुदर दाँतों से युक्त मुसकान दिखाई दे जाती थी। सच ही मुझे तुम्हारी दूधिया दांतों से सजी मुसकान बहुत सुंदर लगती है। मैं तो तुम्हारी मुसकान पर मुग्ध हूँ।

546 Views

Advertisement
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू:
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा:
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्‌टी का गुण धर्म:
फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्‌टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा का थिरकन का!

कवि ने फसल के द्वारा किन-किन में आपसी सहयोग का भाव व्यक्त किया है?

‘दंतुरित मुसकान’ क्या-क्या कर सकती थी?

कवि ने स्वयं को प्रवासी क्यों कहा है?

First 1 2 3 Last
Advertisement