चन्द्र शेखर सिंह ( जन्म- 1 जुलाई, 1927, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 8 जुलाई, 2007) भारत के आठवें प्रधानमंत्री थे। उन्हें युवा तुर्क का सम्बोधन उनकी निष्पक्षता के कारण प्राप्त हुआ था। वह मेधा प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। ऐसे बहुत ही कम लोग होते हैं, जिन्हें विधाता कई योग्यता देकर पृथ्वी पर भेजता है और चंद्रशेखर का शुमार उन्हीं व्यक्तियों में करना चाहिए। विश्वनाथ प्रताप सिंह के बाद चन्द्र शेखर ने ही प्रधानमंत्री का पदभार सम्भाला। वह आचार्य नरेंद्र देव के काफ़ी समीप माने जाते थे। उनके व्यक्तित्व एवं चरित्र से इन्होंने बहुत कुछ आत्मसात किया था। एक सांसद के रूप में चंद्रशेखर का वक्तव्य पक्ष और विपक्ष दोनों बेहद ध्यान से सुनते थे। इनके लिए प्रचलित था कि यह राजनीति के लिए नहीं बल्कि देश की उन्नति की राजनीति हेतु कार्य करने में विश्वास रखते हैं। चंद्रशेखर आत्मा की आवाज़ पर प्रशंसा और आलोचना करते थे। तब यह नहीं देखते थे कि वह ऐसा पक्ष के प्रति कर रहे हैं अथवा विपक्ष के प्रति। लेकिन देश को इस सुयोग्य व्यक्ति से अधिकाधिक उम्मीदें थीं, जो निश्चय ही राजनीतिक व्यवस्था के कारण प्राप्त नहीं की जा सकीं।
चंद्रशेखर का जन्म 1 जुलाई, 1927 को उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के ग्राम इब्राहीमपुर में हुआ था। इनका कृषक परिवार था। चंद्रशेखर का राजनीति के प्रति रुझान विद्यार्थी जीवन में ही हो गया था। इन्हें आग उग़लते क्रान्तिकारी विचारों के कारण जाना जाता था। चंद्रशेखर ने 1950-1951 में राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर उपाधि इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की।
स्नातकोत्तर करने के बाद चन्द्र शेखर समाजवादी आन्दोलन से जुड़ गए। वह पहले बलिया के ज़िला प्रजा समाजवादी दल के सचिव बने और एक वर्ष के बाद राज्य स्तर पर इसके संयुक्त सचिव बन गए। वह 1962 में राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य पर तब आए जब उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चयनित हुए। इस समय तक चंद्रशेखर ने वंचितों और दलितों के कल्याण की पैरवी करते हुए उत्तर प्रदेश सहित कई प्रान्तों में अपनी प्रभावी पहचान बना ली थी। इस समय उनकी उम्र मात्र 35 वर्ष थी। चंद्रशेखर की एक विशेषता यह थी कि वह गम्भीर मुद्दों पर सिंह के समान गर्जना करते हुए बोलते थे। उनकी वाणी में इतनी शक्ति थी कि जब संसद मछली बाज़ार बन रहा होता था तो वहाँ पर सन्नाटा पसर जाता था। चंद्रशेखर को मुद्दों की राजनीति के लिए जाना जाता है। यही कारण है कि विपक्षी नेताओं के साथ उनके मधुर सम्बन्ध रहे। विपक्ष के नेता गतिरोध की स्थिति में उनसे परामर्श और मार्गदर्शन प्राप्त करते थे।
चंद्रशेखर अपने विचारों की अभिव्यक्ति लेखन द्वारा बहुत सशक्त तरीक़े से करते थे। पत्रकारिता का शौक़ पूर्ण करने के लिए उन्होंने ‘यंग इंडिया’ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र का सम्पादन-प्रकाशन किया। इसका सम्पादकीय स्वयं चंद्रशेखर के द्वारा लिखा जाता था, जो सारगर्भित और मर्मस्पर्शी होता था। वह समस्याओं को उठाते थे तथा उनकी समीक्षा बेबाक़ी के साथ करते थे। वह समस्या के समाधान भी सुझाते थे। ऐसा करते हुए चन्द्रशेखर एक नेता से ज़्यादा चिंतक नज़र आते थे। यही कारण है कि इनके सम्पादकीय बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों में बेहद लोकप्रिय हुए। चंद्रशेखर के लेखन में इनका गहन चिंतन परिलक्षित होता था। उनका विश्लेषणात्मक लेखन पाठकों में गहराई तक उतर जाता था।
मेरी जेल डायरी
जून 1975 में आपातकाल की घोषणा के बाद जिन नेताओं को इंदिरा गांधी ने जेल भेजा, उनमें चंद्रशेखर भी थे। लिखित वैचारिक अभिव्यक्ति पर पहरा लग चुका था, इस कारण ‘यंग इंडिया’ का प्रकाशन बंद हो गया। लेकिन लेखक हृदय के मालिक चंद्रशेखर का जेल में रहते हुए भी लेखन कर्म से नहीं रोका जा सका। जेल प्रवास के दौरान चंद्रशेखर ने अपना लेखन जारी रखा और बाद में ‘मेरी जेल डायरी’ के नाम से उनकी पुस्तक प्रकाशित होकर पाठकों के समक्ष आई। इसमें उनके जेल के अनुभवों का लेखा-जोखा है। इन्होंने लिखा है कि राजनीतिक बंदी होते हुए भी उस समय सभी को आवश्यक सुविधाओं से वंचित रखा गया था।
लेखन कार्य
इसके अतिरिक्त ‘डायनेमिक्स ऑफ़ चेंज’ नामक चन्द्र शेखर का एक संग्रह भी प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में उन्होंने देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और ‘यंग इंडिया’ में जो कुछ लिखा था, उसे संग्रहीत किया था। चंद्रशेखर भाषा विद्वान् भी कहे जाते हैं। हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं पर इनकी प्रभावी पकड़ थी। उन्होंने दोनों भाषाओं में लिखा। यदि यह कहा जाए कि उनमें भी प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का व्यक्तित्व सांसें ले रहा था, तो कोई ग़लत नहीं होगा। लेखन के मामले में दोनों काफ़ी समृद्ध थे। चंद्रशेखर ने भारत के अनेक राज्यों की यात्राएँ भी कीं और भारत की आत्मा को समझने का प्रयास किया। इससे उन्हें व्यापक जनसम्पर्क का अवसर प्राप्त हुआ। इन्होंने अपनी यात्राओं के द्वारा सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं को शिक्षा कार्यक्रमों तथा पिछड़ों के उत्थान हेतु जागरूक किया। चंद्रशेखर की एक विशेषता यह भी थी कि वह प्रत्येक कार्य को पूर्ण समर्पण भाव से करते थे। यदि वह किसी विषय विशेष पर लिखते थे तो उसकी तैयारी पहले से करते थे। वह विषय का बारीकी से अध्ययन करते थे और लिखते समय आदि से अन्त तक अपनी पकड़ बनाए रखते थे। उनके लेखों में किसी भी स्थान पर ऐसा नहीं लगता था कि वह भटक गए हैं।
प्रधानमंत्री
विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद चन्द्र शेखर ही काँग्रेस इं के समर्थन से सत्तारूढ़ हुए। इन्हें 10 नवम्बर, 1990 को राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरामण ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। प्रधानमंत्री बनने के बाद चन्द्र शेखर ने बेहद संयमित रूप से अपने दायित्वों का निर्वाह किया। वह जानते थे कि काँग्रेस इं के समर्थन से ही इनकी सरकार टिकी हुई है। यह भी सच है कि विश्वनाथ प्रताप सिंह जिस प्रकार के प्रधानमंत्री साबित हो रहे थे, उसे देखते हुए उन्होंने कांग्रेस की बात पर विश्वास किया कि वह उसके समर्थन से सरकार बना सकते हैं। लेकिन चंद्रशेखर कभी इस भुलावे में नहीं थे कि राजीव गांधी लम्बे समय तक उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने देंगे। देश को मध्यावधि चुनाव से बचाने के लिए भी वह प्रधानमंत्री बने थे। विदेशी मुद्रा संकट होने पर चंद्रशेखर ने स्वर्ण के रिजर्व भण्डारों से यह समस्या सुलझाई। कुछ ही समय में स्वर्ण के रिजर्व भण्डार भर गए और विदेशी मुद्रा का संतुलन भी बेहतर हो गया।
फिर नये चुनाव
काँग्रेस इं यह जानती थी कि जनता का जनता पार्टी से मोहभंग हो चुका है। लेकिन चन्द्र शेखर अच्छा काम कर रहे थे। समर्थन वापस लेने के लिए उपयुक्त बहाना भी होना चाहिए। तब यह बहाना बनाया गया कि चंद्रशेखर सरकार के द्वारा राजीव गांधी की गुप्तचरी की जा रही है। इस आरोप के अगले ही दिन 5 मार्च, 1991 को कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया। ऐसे में चन्द्र शेखर ने संसद भंग करके नए चुनाव सम्पन्न कराने की अनुशंसा राष्ट्रपति को प्रेषित कर दी। वह लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुसार ही कार्य करना चाहते थे। इस प्रकार चन्द्र शेखर लगभग 4 माह प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए। इन सभी स्थितियों के मद्देनज़र राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरामण ने चंद्रशेखर से नया प्रधानमंत्री चुने जाने तक अपने पद पर कार्य करने को कहा। इस प्रकार उन्होंने 21 जून, 1991 तक प्रधानमंत्री का कार्यभार देखा। इस दौरान वह किसी भी विवाद में नहीं आए और निष्ठापूर्वक अपने कर्तव्यों को अंजाम दिया। इनके कार्यवाहक प्रधानमंत्रित्व काल में निष्पक्ष चुनाव भी हुए। चुंकि राजीव गांधी चुनाव के माध्यम से प्रधानमंत्री का पद पुन: पाना चाहते थे, अत: उन्होंने चंद्रशेखर सरकार को दिया गया समर्थन वापस ले लिया था। लेकिन भाग्य का खेल तब कौन जानता था? राजीव गांधी तमिलनाडु में एक चुनावी रैली को सम्बोधित करते हुए मानव बम विस्फोट का शिकार हुए और दर्दनाक उनकी मौत हो गई।
निधन
चन्द्र शेखरको प्लाज्मा कैंसर था। उन्हें 3 मई, 2007 को नई दिल्ली के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ पर 8 जुलाई, 2007 को इनका निधन हो गया। लेकिन चंद्रशेखर एक कर्मठ एवं ईमानदार राजनीतिज्ञ के रूप में भारतवासियों द्वारा सदैव याद किए जाते रहेंगे।