भारत एक खंड जितना बडा देश है। यहा साल के हर मौसम में कहीं न कहीं बारिश आती है। अभी पूरे देश में बारिश का मौसम होते हुए भी देश के कुछ भागो में अकाल की स्थिति भी है। वर्तमान समय में उत्तराखंड की केदारनाथ त्रासदी, कश्मिर की बाढ़, चेन्नई की बाढ़ जैसी बड़ी दुःखदायक घटनाओ के चलते बाढ़ शब्द भारत मे आम हो गया है। हमारे देश में कुदरती आपत्तिओ के कारण बडा जानमाल का नुकशान होना कोई नयी बात नही है। हर साल हजारो करोड का नुकसान और सैकड़ों जान जाना हमारी नियति बन गयी हैं।
अकाल या भूकंप जैसी त्रासदी अक्सर सीमित क्षेत्रो में असर दिखाती है और उनके आने के बाद ही जो उपाय करने हो, किए जा सकते है। वैसे तो बाढ़ भी अत्याधिक बारिश के कारण ही आती है और उसके भी त्रासदी के पश्चात ही कुछ उपाय करने की बनति है। बाढ़ व्यापक क्षेत्र को अपनी झपेट में लेती है, जिससे की बडा जानमाल का नुकशान होता है। साथ में त्रासदी के पश्चात बिमारिया फेलना, फसलो का नुकशान, रास्तो की मरम्मत जैसे प्रश्न भी उपस्थित होते है। अतः बाद में लंबे समय तक राहत और बचाव कार्यो की जरूरत पड़ती है।
भारत के उत्तरीय मेदानी क्षेत्रो में बाढ़ का प्रकोप अक्सर ज्यादा देखने को मिलता है। यह वो क्षेत्र है, जहां देश की करीबन आधी आबादी रहेती है। यह प्रदेश दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रो में से एक है। जहा तक प्राकृतिक कारणो से बाढ़ का प्रकोप हो, तब तो कोई उपाय नही है। पर गंगा, यमुना और उनकी सहायक नदियों में बाढ़ के कारणो मे मानव निर्मित कारण का प्रभाव बहूत ज्यादा है। बडे बांधो की रचना, अनियंत्रित शहेरीकरण, पानी के प्राकृतिक बहाव क्षेत्रो मे रुकावट इत्यादी मानव निर्मित कारक बाढ़ के कारणो मे बडा योगदान करते है। साल भर जो नदियां जीवनदायीनी होती है वही कुछ समय के लिए पूरे क्षेत्र को तहस-नहस कर देती है। एक अभ्यास के अनुसार भारत का 10 से 15 प्रतिशत भूभाग हमेशा बाढ़ से प्रभावित रहता है। जिसमे बिहार, उत्तर प्रदेश, असम और बंगाल राज्यो का करिबन आधा हिस्सा हर साल बाढ़ से ग्रसित होता है।
हिमालय के जंगल प्रदेशो मे जंगलो की अनियंत्रित कटाई से बारिश का पानी तुरंत बहने लगता है, साथ मे जमीन की उपरी परत को भी अपने साथ बहा ले जाता है। इससे बाढ़ भी आती है साथ मे एक जगह जमीन का उपजाउ हिस्सा बह जाता है और नदीयों मे उस मिट्टी का जमाव होने से नदियां छिछरी हो जाती है। अतः नदीयों की जलबहाव क्षमता कम होने लगती है। पानी एक साथ और ज्यादा मात्रा मे आने से नदियां उफान पे आ जाती है, जो किनारे के बडे क्षेत्र मे बाढ़ का कारण बनती है। केदारनाथ त्रासदी से पता चला है की नदी के प्राकृतिक क्षेत्र मे अवैध निर्माण से नदी का नैसर्गिक मार्ग अवरूद्ध होने से जान माल की बडी क्षति होती है। अवैध निर्माण और उससे प्राकृतिक जल मार्गो की रुकावट हर क्षेत्र में हो रही है और बाढ़ का ये एक प्रमुख कारण बना हुआ है। बडे बांध साल भर पानी प्राप्ति का साधन हो सकता है, साथ मे जलिय बिजली निर्माण मे सहायक होते हुए भी प्राकृतिक संतुलन को बडे पैमाने पर विक्षुब्ध करते है। बाँध क्षेत्र मे मिट्टी का जमाव और बारिश के समय एक साथ पानी छोडने की वजह से बाढ़ अनियंत्रित हो जाती है। यहा चीन या नेपाल मे पानी छोडने की वजह से भी बाढ़ आती है।
हमारे देश में आपदा प्रबंधन जैसा होना चाहिए वैसा प्रभावी कभी नही रहा। NDRF या SDRF जैसे संघठन कार्य जरूर करते है पर आपदा का क्षेत्र इतना बडा होता है की राहत और बचाव कार्य सिर्फ नाम मात्र का हो सकता है। जब लाखो लोग प्रभावित हो तब कुछ सौ जवान कितनी राहत दे सकते है? आपदा प्रबंधन मे जवानों की संख्या अपर्याप्त होने के साथ साथ जरूरी साधन की कमी भी बडी वजह है। हर आपदा मै सेना एक मात्र विकल्प बचता है। देश मे हर प्रदेश के पास संभवित आपदा के अनुरूप राहत कार्य के लिए विशेष संघठनो की जरूरत है, साथ मे उनके पास पर्याप्त मात्रा में साधन हो और लोग प्रशिक्षित हो ये भी इतना ही जरूरी है। जन सामान्य मे आपदा प्रबंधन का सामान्य ज्ञान फैलाना भी आवश्यक है। हमे एक देश के तौर पर इस क्षेत्र में तत्काल कार्य करने की जरूरत है।
हाल के समय मे उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल की बाढ़ मे इन सभी कारण के उपरांत मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और नेपाल से अत्याधिक पानी छोडना, साथ मे निरंतर भारी बारिश सबसे प्रमुख रहे। लाखो लोग विस्थापित बने, सैकड़ों जाने गई और हजारो हॅक्टर फसल बरबाद हुई। इन सभी का जोड करे तो जिन मानव निर्मित कारणो से बाढ़ को प्रबलता मिलती है ऐसे तथा-कथित विकास से होने वाला लाभ पानी मे बह जाता है।
हम नदियो को प्रदूषण मुक्त करने के लिए हजारो करोड खर्च करते है फिर भी परिणाम संतोष प्रद नही होता। प्रदूषण भी अनियंत्रित और अनियोजित विकास का परिणाम है। बाढ़ भी इन्ही कारणो से अगर आती नही है तो ज्यादा प्रभावी जरूर होती है। हमे अपने देश के अनूरूप विकास मोडेल तैयार करना होगा। योजनाबद्ध विकास ही दूरगामी परिणाम दे सकता है। नगर आयोजन एसा होना चाहिए जिससे न सिर्फ प्रदूषण नियंत्रित रहे पर ग्रामीण क्षेत्रो पर उसका विनाशक प्रभाव कम से कम रहे। अपने विकास की अपनी परिभाषा बनाना जरूरी है और उसके अनुसार दिर्घ कालिन आयोजन करके ही हम बाढ़ जैसी हमेशा की त्रासदी से छूटकारा पा सकेंगे।