रविरपि न दहति तादृग्वादृग्दह्ति बालुका निकरः ।
अन्यस्याल्लब्धपदो नीचः प्रायेण दुःसहो भवति ॥
भावार्थ:
सूर्य की किरणें अपने ताप से उतना नहीं जलाती हैं जितना कि उनके द्वारा तप्त हुआ एक बालू का ढेर उस पर चलने वाले के पावों को जलाता है। सचमुच, प्रायः किसी अन्य से पद और प्रतिष्ठा पा कर नीच व्यक्ति अपने अधिकार के दुरुपयोग और दुर्व्यवहार् के कारण असहनीय हो जाते हैं।
(जो योग्य है और अपनी बुद्धि एवं महेनत के बल पर पद प्रपट करते है। उन्हे पद की गरिमा और उसकी सत्ता का विवेक होता है। पर जो दूसरों की महेरबानी से पद प्रपात करते है और खुद उसके लायक नहीं होते वे ना तो पद की गरिमा संभाल सकते है ना ही विवेक। इसी लिए ऐसे अयोग्य व्यक्ति के पद पर होने से असह्य स्थिति निर्माण होती है।)
English
Ravirapi na dahati taadrugvaadrugdahati baalukaa nikarah.
Anyasyaallabdhapado neechh praayen duhsaho bhavati.
The rays of the Sun do not scorch so much as a heap of sand heated by the Sun’s rays scorches and burns the feet (while walking over it). Really, the behavior of mean and inferior persons becomes intolerable on getting some position and status from others.
(By using the simile of sand heated by the Sun’s rays, the author of this Subhashita has underlined the truth that if mean and inferior persons are bestowed some status and authority, it is generally misused by them to harm others and at times their behavior becomes intolerable)