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ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार 3 जून 1984

Rina Gujarati 0
ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार 3 जून 1984

आपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना द्वारा 3 से 6 जून 1984 को अमृतसर (पंजाब, भारत) स्थित हरिमंदिर साहिब परिसर को ख़ालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से मुक्त कराने के लिए चलाया गया अभियान था। पंजाब में भिंडरावाले के नेतृत्व में अलगाववादी ताकतें सशक्त हो रही थीं जिन्हें पाकिस्तान से समर्थन मिल रहा था।

पंजाब समस्या की शुरुआत 1970 के दशक से अकाली राजनीति में खींचतान और अकालियों की पंजाब संबंधित माँगों के रूप में हुई थी। 1973 और 1978 ई. में अकाली दल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पारित किया। मूल प्रस्ताव में सुझाया गया था कि भारत की केंद्र सरकार का केवल रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा पर अधिकार हो जबकि अन्य विषयों पर राज्यों को पूर्ण अधिकार हों. वे भारत के उत्तरी क्षेत्र में स्वायत्तता चाहते थे। उनकी माँग थी कि- चंडीगढ़ केवल पंजाब की ही राजधानी हो, पंजाबी भाषी क्षेत्र पंजाब में शामिल किए जाएँ, नदियों के पानी के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की राय ली जाए, ‘नहरों के हेडवर्क्स’ और पन-बिजली बनाने के मूलभूत ढाँचे का प्रबंधन पंजाब के पास हो, फ़ौज में भर्ती काबिलियत के आधार पर हो और इसमें सिखों की भर्ती पर लगी कथित सीमा हटाई जाए, तथा अखिल भारतीय गुरुद्वारा क़ानून बनाया जाए. अकालियों का समर्थन और प्रभाव बढ़ने लगा।

इसी बीच अमृतसर में 13 अप्रैल 1978 को अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच हिंसक झड़प हुई। इसमें 13 अकाली कार्यकर्ता मारे गए। रोष दिवस में सिख धर्म प्रचार की संस्था के प्रमुख जरनैल सिंह भिंडरांवाले ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। अनेक पर्यवेक्षक इस घटना को पंजाब में चरमपंथ की शुरुआत के रूप में देखते हैं। भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी पर सिख समुदाय में अकाली दल के जनाधार को घटाने के लिए जरनैल सिंह भिंडरांवाले को परोक्ष रूप से प्रोत्साहन देने का आरोप लगाया जाता है।

2 जून 1984 को हर मंदिर साहिब परिसर में हज़ारों श्रद्धालुओं ने आना शुरु कर दिया था क्योंकि तीन जून को गुरु अरजुन देव का शहीदी दिवस था। उधर जब प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने देश को संबोधित किया तो ये स्पष्ट था कि सरकार स्थिति को ख़ासी गंभीरता से देख रही है और भारत सरकार कोई भी कार्रवाई कर सकती है। पंजाब से आने-जाने वाली रेलगाड़ियों और बस सेवाओं पर रोक लग गई, फ़ोन कनेक्शन काट दिए गए और विदेशी मीडिया को राज्य से बाहर कर दिया गया।

तीन जून को भारतीय सेना ने अमृतसर पहुँचकर स्वर्ण मंदिर परिसर को घेर लिया। शाम में शहर में कर्फ़्यू लगा दिया गया। चार जून को सेना ने गोलीबारी शुरु कर दी ताकि मंदिर में मौजूद मोर्चाबंद चरमपंथियों के हथियारों और असलहों का अंदाज़ा लगाया जा सके। चरमपंथियों की ओर से इसका इतना तीखा जवाब मिला कि पांच जून को बख़तरबंद गाड़ियों और टैंकों को इस्तेमाल करने का निर्णय किया गया। पांच जून की रात को सेना और सिख लड़ाकों के बीच असली भिड़ंत शुरु हुई।

भीषण ख़ून-ख़राबा हुआ। अकाल तख़्त पूरी तरह तबाह हो गया। स्वर्ण मंदिर पर भी गोलियाँ चलीं। कई सदियों में पहली बार वहाँ से पाठ छह, सात और आठ जून को नहीं हो पाया। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सिख पुस्तकालय जल गया।

भारत सरकार के श्वेतपत्र के अनुसार 83 सैनिक मारे गए और 249 घायल हुए। 493 चरमपंथी या आम नागरिक मारे गए, 86 घायल हुए और 1592 को गिरफ़्तार किया गया। लेकिन ये आंकड़े विवादित माने जाते हैं।
धार्मिक प्रभाव
इस कार्रवाई से सिख समुदाय की भावनाओं को बहुत ठेस पहुँची। स्वर्ण मंदिर पर हमला करने को बहुत से सिक्खों ने अपने धर्म पर हमला करने के समान माना। कई प्रमुख सिखों ने या तो अपने पदों से इस्तीफ़ा दे दिया या फिर सरकार द्वारा दिए गए सम्मान लौटा दिए।

सिखों और काँग्रेस पार्टी के बीच दरार पैदा हो गई जो उस समय और गहरा गई जब दो सिख सुरक्षाकर्मियों ने कुछ ही महीने बाद 31 अक्टूबर को तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या कर दी. इसके बाद भड़के सिख विरोधी दंगों से काँग्रेस और सिखों की बीच की खाई और बड़ी हो गई।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के कारण आहत सिखो की धार्मिक भावनाओं का दुष्परिणाम 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गाँधी की नृशंस हत्या के रूप में सामने आया। उनके ही दो सिक्ख सुरक्षा प्रहरियों ने उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया। इंदिरा गाँधी की मौके पर ही मृत्यु हो गई थी। लेकिन अपराह्न 3 बजे के आस-पास उनकी मृत्यु की सूचना प्रसारित की गई।

Rina Gujarati

I am working with zigya as a science teacher. Gujarati by birth and living in Delhi. I believe history as a everyday guiding source for all and learning from history helps avoiding mistakes in present.

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