जसपाल राणा (जन्म- 28 जून, 1976, चिलामू, टिहरी गढ़वाल) भारत के प्रसिद्ध निशानेबाज हैं। वर्ष 1995 की कॉमनवेल्थ शूटिंग चैंपियनशिप में 8 स्वर्ण जीतकर जसपाल राणा ने नया रिकॉर्ड बनाया था। भारत के दो अन्य निशानेबाजों राज्यवर्धन सिंह राठौड़ और अभिनव बिन्द्रा ने ओलंपिक में भारतीय निशानेबाजी का इतिहास रचा था, किंतु यदि यह कहा जाए कि जसपाल राणा ने इस भरोसे की नींव रखी थी तो ग़लत नहीं होगा। उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने एशियाई, विश्व कामनवेल्थ, राष्ट्रमण्डल व राष्ट्रीय स्तर पर अनेक रिकार्ड स्थापित किए हैं।
जन्म और शिक्षा
जसपाल राणा का जन्म 28 जून, 1976 को अपने पैतृक गाँव चिलामू, टिहरी गढ़वाल ज़िला, उत्तराखण्ड के एक राजपूत परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम नारायण सिंह राणा और माता श्यामा राणा हैं। जसपाल राणा ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा आई.टी.बी.पी. पब्लिक स्कूल, मसूरी तथा एयर फ़ोर्स स्कूल, कानपुर से प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होंने हाई स्कूल और इण्टर की परीक्षा केन्द्रीय विद्यालय, तुग़लकाबाद, दिल्ली से प्राप्त की।
परिवार
जसपाल राणा का विवाह रीना राणा के साथ हुआ, जो एक फ़ैशन डिज़ायनर होने के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर की निशानेबाज भी हैं। राणा दम्पत्ति दो बच्चों के अभिभावक हैं। उनकी बेटी का नाम देवांशी और बेटे का नाम युवराज है।
भारतीय शूटिंग टीम का ‘टार्च बियरर’
जसपाल राणा को भारतीय शूटिंग टीम का ‘टार्च बियरर’ कहा जाता है। उन्होंने अनेक प्रतियोगिताओं में भारत के लिए पदक जीत कर भारत का मान बढ़ाया है। उन्होंने 1995 के सैफ खेलों में चेन्नई में 8 स्वर्ण तथा 1999 के काठमांडू में सैफ खेलों में 8 स्वर्ण पदक जीतकर भारत को ढेरों स्वर्ण पदक जिताए हैं। जसपाल राणा का नाम भारत में निशानेबाजी के खेल में अग्रणी खिलाड़ियों में लिया जाता है। उन्होंने निशानेबाजी में पाई जन्मजात प्रतिभा को अपनी मेहनत व कुशलता से चमकाया और आगे बढ़ाया। वह ‘पिस्टल शूटिंग’ में जल्दी ही प्रसिद्धि पा गए। उनके पिता नारायण सिंह राणा ने उन्हें निशानेबाजी में शिक्षा देकर माहिर किया। जे.सी.टी. के समीर थापर ने उन्हें स्पांसर किया तथा सनी थामस और टिबोर गनाजोल ने कोचिंग प्रदान कर उनकी कुशलता को सर्वश्रेष्ठ स्तर तक पहुंचा दिया।
अर्जुन पुरस्कार विजेता
जसपाल राणा ने राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 600 से अधिक पदक जीते हैं। उन्हें 1994 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है। यद्यपि राणा ने अपने अधिकांश पदक ‘सेंटर फायर पिस्टल’ प्रतियोगिता में जीते हैं, लेकिन उन्होंने एयर पिस्टल, स्टैन्डर्ड पिस्टल, फ्री पिस्टल, रेपिड फायर पिस्टल प्रतियोगिताओं में भी सफलता प्राप्त की है। वास्तव में उन्होंने सबसे पहले स्टैन्डर्ड पिस्टल प्रतियोगिता में ही सफलता पाकर प्रसिद्धि पाई, जब उन्होंने जूनियर वर्ग में 46वींं विश्व निशानेबाजी चैंपियनशिप में इटली के मिलान शहर में 1994 में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। उस समय उन्होंने विश्व का रिकार्ड स्कोर (569/600) बनाया था और अखबारों की सुर्खियों में छा गए थे।
‘रैपिड फायर पिस्टल’ प्रतियोगिता में भी जसपाल राणा ने सफलता प्राप्त की है। इस प्रतियोगिता में एक ही समय में 5 निशानों पर आठ, छह और चार सेकंड के अंतराल पर निशाना लगाया जाता है। इसमें निशाना साधने और शूट करने से ज्यादा अपनी मांसपेशियों की याददाश्त पर निर्भर रहना पड़ता है। राणा ने इस प्रतियोगिता में दिल्ली में 1998 में 41वीं राष्ट्रीय निशानेबाजी प्रतियोगिता में स्पर्ण पदक जीता था और प्रसिद्ध निशानेबाज कंवर लाल ढाका को हराया था।
1997 के राष्ट्रीय खेलों में ‘सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी’ घोषित
जसपाल राणा ने अपने निशानेबाजी कॅरियर की शुरुआत जून, 1987 में दिल्ली में होने वाले तीन सप्ताह के कोचिंग कैम्प से की थी। इसी कोचिंग के कारण चार माह बाद दिल्ली प्रदेश की निशानेबाजी चैंपियनशिप में जसपाल राणा ने एक स्वर्ण व एक कांस्य पदक जीत लिया था। राणा मात्र 12 वर्ष की आयु में प्रसिद्धि पा गए थे, तब उन्होंने 31वीं राष्ट्रीय निशानेबाजी चैंपियनशिप में 1988 में अहमदाबाद में रजत पदक जीता था। 1989 में उन्होंने एक स्वर्ण व एक रजत, तथा 1990 में 5 स्वर्ण पदक जीते। 1992 में मुंगेर में व 1994 में कानपुर में उन्होंने सर्वाधिक पदक प्राप्त कर रिकार्ड बना दिया। मुंगेर में उन्होंने 8 स्वर्ण, 1 रजत व एक कांस्य पदक जीता और कानपुर में कुल 11 स्वर्ण पदक जीते, जिसमें 7 व्यक्तिगत स्पर्धा में और 4 टीम स्पर्धा में थे। 1993 में जसपाल ने नया राष्ट्रीय रिकार्ड अहमदाबाद में बनाया। उन्होंने सेंटर फायर पिस्टल प्रतियोगिता में 590 प्वाइंट बनाकर विश्व रिकार्ड के बराबर रिकार्ड दो बार बनाया। पहला 1995 में कोयम्बटूर की राष्ट्रीय निशानेबाजी चैंपियनशिप में और दूसरा 1997 में बंगलौर में होने वाले राष्ट्रीय खेलों में रिकार्ड स्कोर बनाया। 1997 के राष्ट्रीय खेलों में उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी’ घोषित किया गया।