तियानानमेन चौक विरोध प्रदर्शन चीन की राजधानी बीजिंग मे सन. 1989 के अप्रेल, मे और जून महीने की विरोध प्रदर्शन घटनाओ की बात है। चीन की प्रगति और विकास की चकाचौंध रोशनी से दुनिया और हमारे देश के भी अनेक लोग प्रभावित है। पर चीन की प्रगति के पीछे वहाँ की जनता का कितना बलिदान है उसका तियानानमेन चौक विरोध प्रदर्शन एक उदाहरण मात्र है। हजारो लाखो लोगो की आशाओ, मानवाधिकार और स्वतन्त्रता की अवज मे यहा विकास है। मात्र सरकार की इच्छा और दिखावे के लिए वहाँ की जनता से बड़ी कीमत वसूली गई है और आज भी वसूली जा रही है। दुनिया का कोई भी लोकशाही देश और उसकी जनता इस कीमत पर मिले विकास और आर्थिक प्रगति को ठुकरा देगा।
1989 में बीजिंग के तियानानमेन चौक पर छात्रों के नेतृत्व में विशाल विरोध प्रदर्शन हुआ था जिसे नगरवासियों से भारी समर्थन मिला। इस प्रदर्शन से चीन के राजनीतिक नेतृत्व के बीच आपसी मतभेद खुलकर बाहर आ गये थे। इस विरोध प्रदर्शन को बलपूर्वक दबा दिया गया और बीजिंग में मार्शन लॉ लागू कर दिया गया। ३-४ जून १९८९ को इस चौक पर सेना ने नरसंहार किया। इन प्रदर्शनों का जिस तरह से हिंसक दमन किया गया ऐसा बीजिंग के इतिहास में कभी नहीं हुआ था। आज तक इस हिंसक दमन की आलोचना की जाती है और बार बार इस प्रदर्शन में मारे गए छात्रों के परिजनों की आवाज सामने आती है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार 200 लोग मारे गए और लगभग 7 हजार घायल हुए थे। किन्तु मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार हजारों लोग मारे गए थे।
चीन की राजधानी बीजिंग में तियानानमेन चौक पर तीन और चार जून 1989 को सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए। चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने प्रदर्शन का निर्दयतापूर्वक से दमन किया। चीन की सेना ने बंदूकों और टैंकरों के जरिए शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे निशस्त्र नागरिकों का दमन किया। ये लोग बीजिंग के इस मशहूर चौक पर सेना को रोकने की कोशिश कर रहे थे। यहां छात्र सात सप्ताह से डेरा जमाए बैठे थे।
ये विरोध प्रदर्शन अप्रैल 1989 में चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के पू्र्व महासचिव और उदार सुधारवादी हू याओबांग की मौत के बाद शुरू हुए थे। हू चीन के रुढ़िवादियों और सरकार की आर्थिक और राजनीतिक नीति के विरोध में थे और हारने के कारण उन्हें हटा दिया गया था। छात्रों ने उन्हीं की याद में मार्च आयोजित किया था।