परमवीर ले. मनोजकूमार पांडेय का नाम सुनते ही नापाक पड़ोसी से कारगिल युद्ध की भयानक याद जहन मे आ जाती है। भारत ने पाकिस्तान से हुए सभी युद्ध जीते है, पर बहुत बड़ी कीमत चुकाने के बाद ये सारे विजय प्राप्त हुए है। जब कारगिल मे हमारे ही बंकरो मे घूसपेठिये दुश्मन सैनिक कब्जा जमाकर व्युहात्मक पोजिशन का कब्जा कर चुके थे, ऐसे मे उन्हे खदेड़ना कोई आसान काम नहीं था।
मनोजकुमार ने वो कर दिखाया जो बड़े बड़ो की सोचसे भी आगे था। दो तरफ से गोलीबारी, खुद की जख्मी हालत, दुश्मन की रणनीतिक अच्छी पोजिशन, इन सब से रास्ता निकलते हुए अपने सैनिको का हौसला बढ़ाते हुए हमारे देश का ये शेर ना सिर्फ डटा रहा, आगे बढ़ते हुए, सारे बंकरो पर कब्जा जमाके फिर तिरंगा लहरा दिया। वो बर्फीली चोटियाँ हमारी थी, वापस ले ली….. पर मनोजकुमार ने इसके लिए एक सैनिक जो सर्वोच्च बलिदान कर सकता है, जान के बदले विजय प्राप्त की…. ।
हीरो ऑफ बटालिक – मनोजकुमार ने अप्रत्याशित परिस्थितियों का सामना किया, जान गवाई पर साहस नहीं, जानते हुए की आगे मौत ही है, पर अपने सैनिको का ना सिर्फ मेनेजमेंट किया, उन्हे सही तरीके से मार्गदर्शन करके सारे बंकर कब्जे मे ले के ही दम तोड़ा।
भारत का सर्वोंच्च सैनिक सम्मान – परम वीर चक्र (PVC) उन्हे मरणोपरांत दिया गया। यह वो सम्मान है, जो सिर्फ जान दे के शहीद होने से कहाँ मिलता है !!! … इसे पाने के लिए मौत से हिम्मत पूर्वक टकराना, डटे रहकर नामुमकिन सी बाजी जीतके लाना होता है। मनोजकुमार ने वो किया जो दूसरे नहीं कर पाते। देश ने उन्हे वो सम्मान दिया जो दूसरे सोचते भी नहीं।
पांडेय का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के रुधा गाँव में हुआ था। मनोज नेपाली क्षेत्री परिवार में पिता गोपीचन्द्र पांडेय तथा माँ मोहिनी के पुत्र के रूप में पैदा हुए थे। मनोज की शिक्षा सैनिक स्कूल लखनऊ में हुई। वहीं से उनमें अनुशासन भाव तथा देश प्रेम की भावना संचारित हुई जो उन्हें सम्मान के उत्कर्ष तक ले गई। इन्हें बचपन से ही वीरता तथा सद्चरित्र की कहानियाँ उनकी माँ सुनाया करती थीं और मनोज का हौसला बढ़ाती थीं कि वह हमेशा जीवन के किसी भी मोड़ पर चुनौतियों से घबराये नहीं और हमेशा सम्मान तथा यश की परवाह करे। इंटरमेडियेट की पढ़ाई पूरी करने के बाद मनोज ने प्रतियोगिता में सफल होने के पश्चात पुणे के पास खड़कवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में दाखिला लिया। प्रशिक्षण पूरा करने के पश्चात वे 11 गोरखा रायफल्स रेजिमेंट की पहली वाहनी के अधिकारी बने।
पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध के कठिन मोर्चों में एक मोर्चा खालूबार का था। जिसको फ़तह करने के लिए कमर कस कर उन्होने अपनी 1/11 गोरखा राइफल्स की अगुवाई करते हुए दुश्मन से जूझ गए और जीत कर ही माने। हालांकि, इन कोशिशों में उन्हें अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। परमवीर ले. मनोजकूमार पांडेय 24 वर्ष की उम्र जी देश को अपनी वीरता और हिम्मत का उदाहरण दे गए।
देश के वीर शहीद अपना सर्वोच्च बलिदान करके हमारी रक्षा करते हुए अपना सब कुछ पीछे छोड़कर चले जाते है। वैसे तो हर दिन हर पल हमे उन्हे याद करना चाहिए और उनका कर्ज अदा करे। पर अगर यह नहीं भी हो सकता तो भी हमारा फर्ज है की हम उन्हे कम से कम उनके जन्म दिवस और बलिदान दिवस पर तो जरूर याद करे और उनकी देश भक्ति से प्रेरणा ले। परमवीर ले. मनोजकूमार पांडेय को कोटी कोटी नमन (यहाँ लगी फोटो दिल्ली के परम योद्धा स्थल पर लगी उनकी मूर्ति से ली गई है।)
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