अन्य ग्रहो की तुलना मे पृथ्वी पर पानी याने जल उपलब्ध होने से पृथ्वी पर जीवन संभव हो सका है, अतः ये कह सकते है की पृथ्वी पर जीवन का आधार पानी है। सभी जीवो में प्रायः 70-90% पानी होता है। हम सब जानते है कि पृथ्वी की सतह पर करिबन 71 % हिस्सा पानी है और शेष जमीन। पानी की इतनी अधिकता होने पर भी कहा जाता है की अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा।
जीवन और खासकर मानव जीवन के लिए जरूरी पानी की कुछ खास विशेषताएँ है। सामान्य शब्दो में कहेंं तो सिर्फ पानी नही, पीने योग्य पानी की जरूरत है। विश्व में जितना पानी है ज्यादातर समुद्र मेंं है, जो पिने योग्य नही है। समुद्र और पहाडोंं की चोटियोंं पर बर्फ के स्वरूप मेंं जो पानी है उसे अगर निकाल दिया जाय तो प्राप्य पानी बहुत कम रह जाता है। मानव जीवन के लिए पानी जरूरी है। दुनिया के ज्यादातर लोगोंं के पास मौसम के बदलाव कि वजह से कभी ज्यादा पानी मुश्किले पैदा करता है और कभी पानी अप्राप्य हो जाता है। इससे यह बात स्पष्ट है की विश्व मेंं पानी असमान रूप से वितरित है।
भारत की बात करेंं तो हिमालयन क्षेत्रोंं मेंं बरसात के मौसम मेंं विनाशकारी बाढ़ के रूप मे पानी की अधिकता होती है। देश के अन्य क्षेत्रोंं मेंं भी बरसात का पानी ज्यादातर बहकर समुद्र मेंं चला जाता है। साल के अन्य मौसम मेंं पानी की कमी महसूस होती है। गर्मीयोंं मेंं देश के ज्यादातर प्रदेशोंं मेंं पानी की तंगी होती है। वर्तमान विश्व मेंं पानी अर्थपूर्ण विकास के लिए अनिवार्य है।
हमारे देश मेंं नल से साफ पानी वितरण करने की व्यवस्था ज्यादातर शहरोंं तक ही सिमित है। ज्यादातर ग्रामीण इलाको मेंं भूगर्भ जल या नदी तालाबोंं का संग्रहित जल पीने के लिए इस्तमाल मेंं लाया जाता है। पानी पीने से पहले शुद्धिकरण न के बराबर होता है। नदी और अन्य जल स्रोतोंं मेंं प्रदूषण की मात्रा अत्याधिक बढ़ जाने से अशुद्ध पानी का उपयोग कई रोगोंं का कारण बनता है।
देश मेंं पुराने समय से जल शुद्धिकरण की अनेक पारंपारिक विधियाँ प्रयोग मे लाई जाती है। उन विधियों का प्रयोग कम हो गया है। समग्र देश की बात करेंं तो ज्यादातर लोग अशुद्ध पानी इस्तेमाल करते हैंं। शहरी जल वितरण व्यवस्था पर इतना अधिक बोझ है की वहांं शुद्धिकरण केवल नाम मात्र का हो पाता है। ग्रामीण भारत मेंं स्थिति ज्यादा खराब है।
हमारे देश में औद्योगिक प्रदूषण का असर पानी कि शुद्धता पर पड़ता है। गंगा जल की शुद्धता के बारे मेंं कहा जाता है की गंगा जल लंबे समय तक खराब नही होता। पर आज के प्रदूषण के कारण कुछ जगहो पर गंगा का पानी नहाने योग्य भी नही रहा। पहाडी जल (Mountain Water) अनेक औषधीय गुणधर्म वाला होता है, वही पानी समुद्र तक जाते जाते प्रदूषित हो जाता है। हमारे यहां आर्सेनिक, फ्लोराईड, मर्क्युरी आदि प्रदूषक युक्त पानी का प्रयोग कई बीमारियाँ फैलाता है।
देश मेंं उपलब्ध शुद्ध पीने का पानी ज्यादातर बॉटल पॅक्ड मिलता है। ये बॉटल्ड पानी मुठ्ठी भर लोगो को प्राप्य है, और वो भी सही मायने मेंं शुद्ध नही होता। जल शुद्धिकरण की अत्याधुनिक पद्धति को RO (Reverse Osmesis) कहते हैंं। जिसमेंं अशुद्धियाँ निकालने के लिए मशीन का प्रयोग होता है। RO प्लांट से शुद्ध किए गये पानी मे जरूरी मिनरल्स भी निकल जाते है। जिससे ये तथाकथित शुद्ध पानी भी लंबे समय तक पीने से शरीर मेंं कुछ मिनरल्स की कमी होने का खतरा रहता है।
भारत मे स्वच्छ पेय जल सभी के लिए उपलब्ध कराने हेतु विशेष योजनाएँ बनाने की जरूरत है। सालभर शुद्ध पानी के लिए वर्तमान जल स्रोत प्रदूषण मुक्त करने पडेंगे और नये जल स्रोत विकसित करने की भी अत्यधिक आवश्यकता है। हमारे समग्र समाज के लिए शुद्ध पेय जल के लिए पारंपरिक व्यवस्था विकसित करना अत्यंत अनिवार्य है। जब भारत विश्व की सबसे तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था है ऐसी स्थिति में सभी को सालभर जरूरी मात्रा मेंं शुद्ध पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करना हमारे लिए मुश्किल नही होना चाहिए।