मास्ति वेंकटेश अय्यंगार ( जन्म: 6 जून, 1891, कोलार ज़िला, कर्नाटक) ‘कन्नड़ कहानी के प्रवर्तक’ और ’कन्नड़ की संपत्ति’ के रूप में ख्याति प्राप्त कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार, अनुवादक और आलोचक थे। इनके लगभग 15 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए थे। मास्ति की शैली को कम से कम शब्दों में एक संपूर्ण अनुभव संप्रेषित करने की विलक्षण क्षमता प्राप्त है। ‘नवरात्रि’ एवं ‘श्रीरामपट्टाभिषेक’ उनके दो महत्त्वपूर्ण काव्य हैं।
कर्नाटक में कोलार ज़िले के मालूर तालूक के ‘मास्ति’ नामक ग्राम में मास्ति वेंकटेश अय्यंगार का जन्म हुआ था। 1914 में मास्ति ने मद्रास विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा पास की थी। तदुपरांत मैसूर राज्य की ‘सिविल सर्विस परीक्षा’ में उत्तीर्ण होकर असिस्टेंट कमिश्नर बने। आप 1930 में जिलाधिकारी भी बने।
मास्ति “आधुनिक कन्नड़ कहानी के जनक” के रूप में प्रख्यात हैं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक कहानियां 1910-1911 में लिखीं। उनके लगभग 15 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए।
मास्ति ने उपन्यास भी लिखे हैं, जिनमें से उनके दो ऐतिहासिक उपन्यास ‘चेन्नबसवनायक’ और ‘चिक्क वीरराजेंद्र’ अत्यंत प्रसिद्ध हैं। पहले उपन्यास की पृष्ठभूमि 18वीं शताब्दी के दक्षिण भारत की एक जागीर ‘बिडानूर’ है और दूसरे उपन्यास का कथासूत्र कुर्ग के अंतिम शासक से संबद्ध है, जिसका शासन 1943 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने हाथ में ले लिया था।
कन्नड़ के बहुत कम उपन्यासों में समाज और बहुमुखी सामाजिक संबंधों का इन दो उपन्यासों जैसा सूक्ष्म एवं गहन चित्रण हुआ है। इसके बावजूद मास्ति मात्र उत्तेजित एवं प्रेरित करने के लिए प्राचीन सामन्तवादी समाज की पुनर्सृष्टि करते प्रतीत नहीं होते। उन्होंने इनमें एक राज्य के पतन एवं विघटन का अध्ययन किया है और स्वयं स्त्री-पुरुषों में भी उनके कारण खोजे हैं। उनकी गद्यशैली की विशेषता शालीनता एवं संयम हैं और भाषा बोलचाल की है। इन्हीं करणों से उनका सरल वर्णन भी गहन अनुभव की महत्ता प्राप्त कर लेता है। मास्ति की शैली को कम से कम शब्दों में एक संपूर्ण अनुभव संप्रेषित करने की विलक्षण क्षमता प्राप्त है। ‘नवरात्रि’ एवं ‘श्रीरामपट्टाभिषेक’ उनके दो महत्त्वपूर्ण काव्य हैं।
मास्ति वेंकटेश अय्यंगार की आस्था किसी संकीर्ण धार्मिक मताग्रह से नहीं जुड़ी थी। उन्होंने बुद्ध, ईसा, मुहम्मद तथा रामकृष्ण परमहंस, सभी पर पूर्ण श्रद्धा के साथ लिखा। उनकी आस्था उन्हें नैतिक जगह की सर्वोच्चता स्थापित करने के लिए उत्प्रेरित करती थी, जिसका हमारी संस्कृति की मनीषा से पूर्व सामंजस्य है। यह आस्था जीवन मूल्य एवं अर्थवत्ता की ओर गतिशील रहती है और उनका लेखन मूलभूत मानव मूल्यों का एक संवाहक बन जाता है। यही कारण है कि मास्ति सोल्लास और कुशलता से ऐसे चरित्रों की रचना करते हैं, जिनमें मनुष्य की अंतर्दृष्टि किसी भी आवेश द्वारा धूमिल नहीं पड़ती। उनका मनुष्य इंद्रिय-विजय में देववत है, परंतु फिर भी अत्यंत मानवीय एवं करुणामय है। उनकी मूल रुचि मानव प्रकृति की पवित्रता एवं शुभता में है। परंतु मास्ति यह कभी नहीं भूलते कि मनुष्य दिव्य शक्ति के उपकरण मात्र हैं।
मास्ति उन कन्नड़ भाषा के लेखकों में से थे, जिन्होंने कन्नड़ साहित्य में पुनरुत्थान युग आरंभ करके उसकी समृद्धि में विशिष्ट योगदान दिया। उन्होंने साहित्य की समस्त विधाओं, कहानी, उपन्यास, कविता, नाटक, आख्यानेतर गद्य, समालोचना आदि में समान रूप से सफलता प्राप्त की थी।
मास्ति वेंकटेश अय्यंगार का रचना संसार समृद्ध है। बिन्नह, अरुण तावरे, चेलुवु, गौडरमल्ली, नवरात्रि आदि इसके कविता संग्रह हैं। ‘श्रीराम पट्टाभिषेक’ इनका महाकाव्य है। इनकी लिखी सैकड़ों कहानियाँ 10 भागों में प्रकाशित हैं। चेन्नबसव नायक और चिकवीर राजेन्द्र – मास्ति के दो वृहत उपन्यास हैं। काकनकोटे, ताळीकोटे, यशोधरा आदि नाटक हैं। लियर महाराजा, चंडमारूत, द्वादषरात्री, हैमलेट आदि इनके कन्नड अनुवाद नाटक हैं। मास्तिजी की आत्मकथा ‘भाव’ तीन भागों में प्रकाशित है। मास्ति ‘जीवन’ पत्रिका चलाते थे। 1944 से 1965 तक वे उसके संपादक थे।
मास्ति वेंकटेश अय्यंगार ‘साहित्य अकादमी’ और ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ (1983) पुरस्कारों से समाट्टत थे। ‘मैसूर विश्वविद्यालय’ ने उन्हें मानद डी.लिट उपाधि से सम्मानित किया था। 15वें कन्नड़ साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष पद उन्हें मिला था। ऐसे कई सम्मान राज्य एवं राष्ट्रस्तर पर मास्ति को प्राप्त हुए थे।
मास्ति वेंकटेश अय्यंगार 95 साल का यशस्वी जीवन जी के अपने जन्म दिन 6 जून को ही साल 1986 मे परलोक पधारे। इस तरह 6 जून उनका जन्मदिवस एवं पुण्यतिथि भी है।