उत्पलस्य च पद्मस्य मत्स्यस्य कुमुदस्य च ।
एक्जातिप्रसूतानां रूपं गन्धः प्रथक्प्रथक् ॥
भावार्थ:
यद्दपि कमल पुष्प की विभिन्न प्रजातियां जैसे उत्पल, पद्म और कुमुद, तथा मछलियां एक ही स्थान और वातावरण में (अर्थात जल में ) उत्पन्न होते हैं, फिर भी उन सब का रूप और गन्ध प्रथक – प्रथक होता है।
( इस सुभाषित के माध्यम से सुभाषितकार ने पृकृति की विविधता को रेखांकित किया है कि एक समान वातावरण तथा एक ही जाति के (जलज होने पर भी,) अर्थात् जल में ही उत्पन्न होने वाले, कमल पुष्प तथा मछलियां विभिन्न रूप तथा गन्ध वाली होती हैं | )
English
Utpalasya cha padmasya matsyasya kumudasya cha.
ekjaatiprsutanam rupam gandhah prathakprathak.
( Utpala, Padma and kumud are names of different varieties of lotus flower having different hue, shape and smell. )
Although ‘Utpal’ , ‘Padma’ and “Kumud’ as also Fish of different types, all of them have the same lineage (of being born in water) their appearance, hue and smell are totally different.
(Through this Subhashita the author has emphasized the glory of the Nature by citing the example of different varieties of lotus flowers and fish grown in water, that various species of living beings, animals, vegetation etc., even if they grow in an environment common to all of them, their appearance, colour, size smell etc is always different..)