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देवी प्रसाद रॉय चौधरी – प्रसिद्ध मूर्तिकार, चित्रकार और कलाकार

Rina Gujarati 0

देवी प्रसाद रॉय चौधरी MBE प्रसिद्ध मूर्तिकार, चित्रकार और ललित कला अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष थे। उन्हें अपनी कांस्य मूर्तियों के लिए जाना जाता है, जिसमें श्रम की विजय (Triumph of Labour), चेन्नई और शहीद स्मारक (पटना) शामिल हैं। श्री रॉय चौधरी आधुनिक भारतीय कला के प्रमुख कलाकारों में गिने जाते है। वे 1962 में ललित कला अकादमी के फ़ेलो भी बने थे। भारत सरकार ने उन्हें कला में उनके योगदान के लिए 1958 में पद्म भूषण से सम्मानित किया था।

देवी प्रसाद रॉय चौधरी
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अभ्यास और कार्य

रॉय चौधरी का जन्म 15 जून 1899 को ब्रिटिश भारत के अविभाजित बंगाल के रंगपुर (वर्तमान में बांग्लादेश में) के तेजपुर में हुआ था। घर से ही उन्होने अपनी शैक्षणिक पढ़ाई की। उन्होंने बंगाली चित्रकार, अबनिंद्रनाथ टैगोर से पेंटिंग सीखी और उनके शुरुआती चित्रों मे उनके गुरु का प्रभाव भी दिखाता है।बाद मे मूर्तिकला की ओर रुख करते हुए, उन्होंने शुरू में हिरॉमोनी चौधरी से प्रशिक्षण लिया, और बाद में, आगे के प्रशिक्षण के लिए इटली चले गए। इस अवधि के दौरान, उनके कार्यों मे पश्चिमी प्रभावों की असर दिखनी शुरू हुई।

भारत लौटकर, उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट में दाखिला लिया। 1928 में, वे चेन्नई में गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ फाइन आर्ट्स में शामिल होने के लिए चले गए, पहले एक छात्र के रूप में और फिर 1958 में अपनी सेवानिवृत्ति तक विभाग के प्रमुख, वाइस प्रिंसिपल और प्रिंसिपल के रूप में वहां काम किया। जब वे चेन्नई कॉलेज में प्रिंसिपल थे उसी समय 1937 में ब्रिटिश सरकार द्वारा MBEके रूप में सम्मानित किया। जब 1954 में ललित कला अकादमी की स्थापना 1954 में हुई तो उन्हें संस्थापक अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया। देवी प्रसाद रॉय चौधरी ने 1955 में टोक्यो में आयोजित यूनेस्को की कला संगोष्ठी के अध्यक्ष के रूप में भी काम किया।

देवी प्रसाद रॉय चौधरी

प्रदर्शनियाँ

रॉय चौधरी फ्रांसीसी मूर्तिकार, अगस्टे रोडिन के काम से काफी प्रभावित थे। 1993 में कोलकाता में देवी प्रसाद रॉय चौधरी पहली एकल प्रदर्शनी थी। जिसके बाद भारत में बिड़ला अकादमी ऑफ आर्ट एंड कल्चर, कोलकाता, जहांगीर आर्ट गैलरी, मुंबई, नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट, दिल्ली और ललित कला अकादमी, नई दिल्ली, सहित कई प्रदर्शनियां हुईं। वे बड़े आकार की बाहरी मूर्तियों के लिए जाने जाते हैं, जैसे कि मरीना बीच, चेन्नई स्थित Triumph of Labour, और महात्मा गांधी की प्रतिमा, पटना में शहीद स्मारक, जब की Winter Comes और विक्टिम ऑफ़ हंगर ये दोनों उनकी कांस्य प्रतिमाए है।

दिल्ली में दांडी मार्च प्रतिमा भी उनही का काम है। हरेम का एक कैदी, रास लीला, एक बड़े क्लॉक में एक ड्रामाटिक पोज़ ऑफ़ द मैन और हैट एंड द ट्रिब्यून उनकी कुछ उल्लेखनीय पेंटिंग हैं। उनकी कृतियाँ सरकारी संग्रहालय, चेन्नई, नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट, नई दिल्ली, जगनमोहन पैलेस, सालारजंग संग्रहालय, हैदराबाद और त्रावणकोर आर्ट गैलरी, केरल में प्रदर्शित हैं। उनके कुछ छात्रों जैसे कि निरोद मजूमदार और परितोष सेन अपने बूते प्रख्यात कलाकार हुए।

सम्मान

1958 में, भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। उन्होंने 1962 में ललित कला अकादमी फैलोशिप प्राप्त की और छह साल बाद, रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता ने उन्हें 1968 में मानद डि-लीट से सम्मानित किया। देवी प्रसाद रॉय चौधरी का १५ अक्टूबर 1975 को 76 वर्ष की आयु में निधन हो गया।

Rina Gujarati

I am working with zigya as a science teacher. Gujarati by birth and living in Delhi. I believe history as a everyday guiding source for all and learning from history helps avoiding mistakes in present.

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