मियाँ नसीरुद्दीन ने औंखों के कंचे हम पर फेर दिए। फिर तरेरकर बोले- 'क्या मतलब? पूछिए साहब-नानबाई इल्म लेने कहीं और जाएगा? क्या नगीनासाज के पास? क्या आईनासाज के पास? क्या मीनासाज के पास? या रफूगर, रंगरेज या तेली-तंबोली से सीखने जाएगा? क्या फरमा दिया साहब-यह तो हमारा खानदानी पेशा ठहरा । हाँ, इल्म की बात पूछिए तो बो कुछ भी सीखा, अपने वालिद उस्ताद से ही । मतलब यह कि हम घर से न निकले कि कोई पेश। अख्तियार करेंगे । जो बाप-दादा का हुनर था वही उनसे पाया और वालिद मरहूम के उठ जाने पर आ बैठे उन्हीं के ठीये पर!'
मियाँ नसीरुद्दीन ने इतना तल्ख जवाब क्यों दिया?
मियाँ नसीरुद्दीन ने विभिन्न लोगों के उदाहरण देकर क्या बात समझ की कोशिश की है?
मियाँ नसीरुद्दीन कैसे, कहाँ आ बैठे?
जब नसीरुद्दीन से पूछा गया कि उसने नानबाई की कला किससे और कैसे सीखी, तब उन्होंने यह तल्ख उत्तर दिया।
यह तो स्वाभाविक ही था कि नानबाई कला उन्होंने अपनै वालिद से सीखी । यह उनका खानदानी पेशा रहा है । नसीरुद्दीन के हिसाब से यह प्रश्न करना ही बेमानी है ।
मियाँ नसीरूद्दीन ने नगीनासाज, आईनासाज ' मीनासाज, रफूगर, रँगरेज और तेली-तंबोली का उदाहरण देकर समझाया कि इन लोगों वेन पास तो इस इल्म की तालीम मिलने से रही । जब कोई पेशा खानदानी होता है तो उसे वालिद से ही सीखकर आगे बढ़ाया जाता है । यही बात नसीरुद्दीन ने समझाने की कोशिश की है ।
मियाँ नसीरुद्दीन अपने वालिद उस्ताद से नानबाई का हुनर सीखकर यह काम करने लगे । जब उनके वालिद का इंतकाल हो गया तो वे उन्हीं के ठीये अर्थात् उसी दुकान पर यह काम करने के लिए आ बैठे ।