दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या  करें                                                   सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बिलखान। जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान।। - Zigya
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दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या  करें                                                  
सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बिलखान।

जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान।।


प्रसंग: प्रस्तुत काव्याशं ‘रामचरितमानस’ के ‘ललंकाकांड’ से उवत है। मेघनाद की शक्ति लगने से लक्ष्मण मूर्च्छित हो गए थे, पर ललंकाके वैद्य सुषेण के उपचार से वे स्वस्थ भी हो गए। जब रावण को यह समाचार मिला तो उसे बहुत दुःख हुआ क्योंकि उनका सब किया-कराया बेकार चला गया।

व्याख्या: रावण के वचन सुनकर कुंभकर्ण बिलखकर (दु:खी होकर) बोला-अरे मूर्ख! जगत जननी जानकी (माता सीता) को चुराकर (हर कर) अब तू कल्याण चाहता है।

विशेष 1. कुंभकर्ण की स्पष्टवक्तृता पता चलती है।

2. भाषा: अवधी।

3. छंद: दोहा।

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