दबाव समूह में लोग अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सरकार की नीतियों को प्रभावित करते है। इसका निर्माण तब होता है जब समान इच्छा, हित या विचार वाले लोग समान उद्देश्य की पूर्ति के लिए एकजुट हो जाते है। उदाहरण के लिए:
(i) किसान संघ- अखिल भारतीय किसान यूनियन
(ii) छात्र संगठन- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्
(iii) व्यापारी संघ- अखिल भारतीय व्यापार मण्डल
(iv) अध्यापक संघ - अखिल भारतीय अध्यापक परिषद्
दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के उद्देश्य भिन्न-भिन्न होते है। सामान्यतः दबाव समूहों का कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं होता न ही वे देश की सत्ता पर अधिकार जमाना चाहते है। इसके विपरीत राजनीतिक दलों को मुख्य उद्देश्य देश की सत्ता पर अधिकार ज़माने का ही होता है। दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के आपसी सम्बन्ध कई रूप धारण कर सकते है। इसमें से कुछ प्रत्यक्ष और कुछ अप्रत्यक्ष भी होते है-
(i) कई बार बड़े आंदोलन, राजनीतिक आंदोलन का रूप धारण कर लेते है इसके राजनीति में उथल-पुथल हो जाती है।
(ii) कई बार दवाब-समूहों राजनीतिक दलों द्वारा ही बनाये जाते है। उनकी बागडोर राजनीतिक दलों के हाथों में होती है। ऐसी स्थिति में ये राजनीतिक राजनीतिक दलों के ही विस्तार के रूप में नज़र आते है।
(iii) राजनीतिक दलों को कई बार दबाव-समूहों से नेता प्राप्त होते है।
(iv) काफी विषयों में आंदोलन समूहों द्वारा नये मुद्दे उठाए जाते है जिनको प्रकारांतर में राजनीतिक दल अपना लेते है।
दबाव-समूहों की गतिविधियाँ लोकतांत्रिक सरकार के कामकाज में कैसे उपयोगी होती है?
दबाव-समूह और आंदोलन राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं?
दबाव समूह और आंदोलन राजनीति को निम्नलिखित तरह प्रभावित करते है-
(i) दबाव समूह और आंदोलन सरकार से अपनी बातें मनवाने हेतु हड़ताल और आंदोलन करके सरकार के कार्यविधि में बाँधा डालते है।
(ii) विभिन्न दबाव समूह और आंदोलन अपने लक्ष्य की पूर्ति हेतु कई प्रकार के अभियान चलते है, बैठके आयोजित कर जनता का समर्थन पाने की कोशिश करते है। इस प्रकार राजनीति प्रभावित होती है।
(iii) दबाव समूह अपनी बातों को जनता और सरकार तक पहुँचाने के लिए महंगे विज्ञापनों का साहरा भी लेते है और विपक्षी नेताओं को अपने पक्ष में करके उनसे भाषणबाजी भी करवाते है।
दबाव-समूह और राजनीतिक दल में क्या अंतर है?