उत्तर मैदान और प्रायदीपीय पठार में अन्तर बताएँ।
उत्तर का मैदान:
1. भूगर्भिक दृष्टि से उत्तर के मैदान का निर्माण वर्तमान भूगर्भिक काल से हुआ है।
2. उत्तर का मैदान अत्याधुनिक स्थलरूप है।
3. नदी प्रणालियों ने उत्तर के मैदान को नया रूप और आकार दिया है।
4. यह उपजाऊ समतल मैदान है।
5. उत्तर मैदान का निर्माण नदियों द्वारा लाए गए जलोढ़ मृदा से हुआ है।
6. उत्तर का उपजाऊ मैदान तीन भागों में बंटा है।
(क) पंजाब के मैदान का निर्माण सिंधु और उसकी सहायक नदियों द्वारा हुआ है।
(ख) उत्तर भारत में गंगा का मैदान ।
(ग) असम में ब्रह्मपुत्र का मैदान ।
7. उतर का मैदान कृषि के उच्च उत्पादन के लिए उपजाऊ और जलोढ़ मृदा से सम्पन्न है।
प्रायद्वीपीय पठार:
हिमालय के किस भाग को पूर्वांचल के नाम से जाना जाता हैं? पूर्वांचल हिमालय पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
ब्रहम्मुत्र नदी हिमालय के पूर्वी सीमा का निर्धारण करती है। दिबांग गार्ज के उपर हिमालय तीक्षण रूप से दक्षिण की ओर मुड़कर भारत के पूर्वी सीमा पर फैला है। जिसे पूर्वांचल केनाम से जाना जाता है। ये समानान्तर श्रेणियों में है। यह मज़बूत बलुआ पत्थर और अवसादी शैलों से बना है।
हिमालय की अपेक्षा पूर्वांचल पहाड़ियाँ उतनी ऊँची नही है। पहाड़ियाँ और श्रेणियाँ घने वनों से ढ़की हुई हैं। पूर्वांचल की कुछ प्रमुख पहाड़ियाँ है:
(क) पटकोई बूम और नागा की पहाड़ियाँ।
(ख) मिज़ो और मणिपुर की पहाड़ियाँ।
(ग) मेघालय-बंगलादेश सीमा के साथ गारों, खासी और जयंतिया की पहाड़ियाँ।
(घ) उतर के डल्फा की पहाड़ियाँ।
गोण्डवानालैण्ड से भारत के निर्माण का वर्णन करें।
वृहत् श्रेणी के विभिन्न भागों पर टिप्पणी लिखें।
प्रायद्वीपीय पठार की महत्वपूर्ण विशेषताओं का वर्णन करें ?
भारत का प्रायद्वीपीय पठार उतरी मैदान के दक्षिण में तथा भारत के दक्षिणी सीरा तक फैला है। प्रायद्वीपीय पठार एक मेज की आकृति वाला स्थल है। जो पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय तथा रुपान्तरित शैलों से बना है। यह त्रिभुजाकार है। यह सबसे प्राचीनतम और स्थाई भूभाग है।
इस पठार के दो मुख्य भाग है:
1. मध्य उच्च भाग और 2. दक्कन का पठार
1. नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो कि मालवा के पठार के अधिकतर भागों पर फैला है उसे मध्य उच्चभूमि के नाम से जाना जाता है ।
2. प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित हैं जिसे दक्कन के पठार के नाम से जाना जाता है। यह एक त्रिभुजाकार भूभाग है जो उतर में चौड़ा तथा दक्षिणी भाग में पतला होता गया। इसका निर्माण लावा प्रवाह से हुआ है। ज्वालामुखी उद् भेदन के कारण इसका बड़ा भाग बैशाल्ट के शैलों से बना है। इसका विस्तार उतर में सतपुड़ा तक है और महादेव की पहाड़ियाँ, कैमुर की पहाड़ियाँ, मैकाल की पहाड़ियाँ इसके पूर्वोतर विस्तार को दर्शाता है। दक्कन का पठार पश्चिम में पश्चिमी घाट तथा पूर्वी घाट के बीच स्थित है। पश्चिमी घाट की औसतन ऊँचाई लगभग 900 से 1600 मीटर तथा पूर्वी घाट की ऊँचाई 600 मीटर है। इसलीए पठार पश्चिम की ओर ऊँचा तथा पूर्व की ओर ढालू है। दक्कन के पठार के काली मृदा के क्षेत्र को दक्कन ट्रैप के नाम से जाना जाता है।