वृहत् श्रे&

हिमालय के किस भाग को पूर्वांचल के नाम से जाना जाता हैं? पूर्वांचल हिमालय पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।


ब्रहम्मुत्र नदी हिमालय के पूर्वी सीमा का निर्धारण करती है। दिबांग गार्ज के उपर हिमालय तीक्षण रूप से दक्षिण की ओर मुड़कर भारत के पूर्वी सीमा पर फैला है। जिसे पूर्वांचल केनाम से जाना जाता है। ये समानान्तर श्रेणियों में है। यह मज़बूत बलुआ पत्थर और अवसादी शैलों से बना है।

हिमालय की अपेक्षा पूर्वांचल पहाड़ियाँ उतनी ऊँची नही है। पहाड़ियाँ और श्रेणियाँ घने वनों से ढ़की हुई हैं। पूर्वांचल की कुछ प्रमुख पहाड़ियाँ है:
(क) पटकोई बूम और नागा की पहाड़ियाँ।
(ख) मिज़ो और मणिपुर की पहाड़ियाँ।
(ग)  मेघालय-बंगलादेश सीमा के साथ गारों, खासी और जयंतिया की पहाड़ियाँ।
(घ) उतर के डल्फा की पहाड़ियाँ।


प्रायद्वीपीय पठार की महत्वपूर्ण विशेषताओं का वर्णन करें ?


भारत का प्रायद्वीपीय पठार उतरी मैदान के दक्षिण में तथा भारत के दक्षिणी सीरा तक फैला है। प्रायद्वीपीय पठार एक मेज की आकृति वाला स्थल है। जो पुराने क्रिस्टलीय, आग्नेय तथा रुपान्तरित शैलों से बना है। यह त्रिभुजाकार है। यह सबसे प्राचीनतम और स्थाई भूभाग है।

इस पठार के दो मुख्य भाग है:

1. मध्य उच्च भाग और 2. दक्कन का पठार

1. नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो कि मालवा के पठार के अधिकतर भागों पर फैला है उसे मध्य उच्चभूमि के नाम से जाना जाता है ।

2. प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित हैं जिसे दक्कन के पठार के नाम से जाना जाता है। यह एक त्रिभुजाकार भूभाग है जो उतर में चौड़ा तथा दक्षिणी भाग में पतला होता गया। इसका निर्माण लावा प्रवाह से हुआ है। ज्वालामुखी उद् भेदन के कारण इसका बड़ा भाग बैशाल्ट के शैलों से बना है। इसका विस्तार उतर में सतपुड़ा तक है और महादेव की पहाड़ियाँ, कैमुर की पहाड़ियाँ, मैकाल की पहाड़ियाँ इसके पूर्वोतर विस्तार को दर्शाता है। दक्कन का पठार पश्चिम में पश्चिमी घाट तथा पूर्वी घाट के बीच स्थित है। पश्चिमी घाट की औसतन ऊँचाई लगभग 900 से 1600 मीटर तथा पूर्वी घाट की ऊँचाई 600 मीटर है। इसलीए पठार पश्चिम की ओर ऊँचा तथा पूर्व की ओर ढालू है। दक्कन के पठार के काली मृदा के क्षेत्र को दक्कन ट्रैप के नाम से जाना जाता है।


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वृहत् श्रेणी के विभिन्न भागों पर टिप्पणी लिखें।


  1. हिमालय विश्व के सबसे ऊँचे पर्वतो में से एक है और एक अत्यधिक असम अवरोधों में से एक है। जो पश्चिम से पूरब सिंधु नदी से ब्रह्मपुत्र नदी तक पूरे भारत के उत्तरी सीमा का निर्माण करते हैं। भूगर्भिक दृष्टि से यह नवीन और संरचना की दृष्टि से वलित पर्वत प्रणाली है।
  2. पश्चिम से पूर्व हिमालय को तीन क्षैतिवत विभागों में बाँटा गया है। सबसे उत्तरी भाग को वृहत् हिमालय या आन्तरिक हिमालय के नाम से जाना जाता है। हमेशा बर्फ़ तथा हिमनदियों से ढ़का होने के कारण इसे हिमाद्रि के नाम से जाना जाता है। इन श्रेणियों की औसत उँचाई 6000 मीटर है। सभी मुख्य और प्रमुख उँची चोटियाँ (शिखर) इसी श्रेणी में स्थित है। कुछ प्रमुख उँचे शिखर नेपाल में एवरेस्ट (8848) मी०, सिक्किम में कंचनजुंगा (88598) मी०, कश्मीर में नंगा पर्वत, उत्तराखण्ड में नन्दा देवी और अरूणाचल प्रदेश में नामचा बरुआ और नेपाल में धौलागिरी और अन्नपूर्णा।
  3. हिमाद्री के दक्षिण में स्थित श्रेणी को निम्न हिमालय या हिमाचल कहा जाता है जिसकी औसत चौड़ाई 50 कि०मी० है। इस श्रेणी की औसत उँचाई 3900 से 4500 मीटर है। इस श्रेणी के प्रमुख श्रेणी पीर-पंजाल श्रेणी, धौलाधर श्रेणी और महाभारत श्रेणी है। कश्मीर की प्रमुख घाटी, तथा हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा और कुलू घाटियाँ इसी श्रेणी में स्थित हैं।
  4. हिमालय के सबसे बाहरी श्रृंखला को शिवालिक या बाह्य हिमालय कहा जाता है। इनकी चौड़ाई 10 से 50 कि० मी० तथा उँचाई 900 से 1100 मीटर के बीच है। ये श्रृंखलाएँ उत्तर में स्थित मुख्य हिमालय की श्रृंखलाओं से नदियों द्वारा लाई गई असंपिडित अवसादों से बनी है। ये घाटियाँ बजरी तथा जलोढ़ की मोटी परत से ढ़की हुई है।
  5. निम्न हिमाचल तथा शिवालिक के बीच में स्थित लंबवत् घाटी को दून के नाम से जाना जाता है। कुछ प्रसिद्ध दून हैं- देहरादून, कोटली दून एवं पाटली दून।

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उत्तर मैदान और प्रायदीपीय पठार में अन्तर बताएँ।


उत्तर का मैदान:
1. भूगर्भिक दृष्टि से उत्तर के मैदान का निर्माण वर्तमान भूगर्भिक काल से हुआ है।
2. उत्तर का मैदान अत्याधुनिक स्थलरूप है।
3. नदी प्रणालियों ने उत्तर के मैदान को नया रूप और आकार दिया है।
4. यह उपजाऊ समतल मैदान है।
5. उत्तर मैदान का निर्माण नदियों द्वारा लाए गए जलोढ़ मृदा से हुआ है।
6. उत्तर का उपजाऊ मैदान तीन भागों में बंटा है।
(क) पंजाब के मैदान का निर्माण सिंधु और उसकी सहायक नदियों द्वारा हुआ है।
(ख) उत्तर भारत में गंगा का मैदान ।
(ग) असम में ब्रह्मपुत्र का मैदान ।
7. उतर का मैदान कृषि के उच्च उत्पादन के लिए उपजाऊ और जलोढ़ मृदा से सम्पन्न है।


प्रायद्वीपीय पठार:

  1. भूगर्भिक दृष्टि से प्रायद्वीपीय पठार गोण्डवाना लैण्ड का एक भाग है। जो प्राचीन वृहत महाद्वीप का दक्षिणी भाग है।
  2. प्रायद्वीपीय पठार प्राचीन भू-भाग हैं।
  3. यह सबसे सुदृढ़ स्थल भाग है।
  4. इस पठारी भाग में चौड़ी तथा छिछली घाटियाँ एवं गोलाकार पहाड़िया हैं । प्रयद्वीपीय पठार एक मेज की आकृति वाला स्थल है।
  5. प्रायद्वीपीय पठार पुराने क्रिस्टलीय आग्नेय तथा रुपान्तरित शैलों से बना है।
  6. प्रायद्वीपीय पठार के दो मुख्य भाग है:
    (क) मध्य उच्च भूमि।
    (ख) दक्कन का पठार।
  7. प्रायद्वीपीय पठार की एक विशेषता यहा पायी जाने वाली काली मृदा है जिसे दक्कन ट्रैप के नाम से भी जाना जाता है।


गोण्डवानालैण्ड से भारत के निर्माण का वर्णन करें।


  1. भूगर्भशारित्रयों के अनुसार प्लेट विवर्तनिक का सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया जिसके अनुसार भूपर्पटी का निर्माण प्लेट विवर्तनिक से हुआ है। इन प्लेटों के प्रवाह ने भारत के वर्तमान स्थलस्वरूप के निर्माण को प्रभावित किया। पैजियाँ के दक्षिण वाले भाग को गोण्डवानालैण्ड के नाम से जाना गया। जिसमें भारत, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका, दक्षिण अफ्रिका ये सभी एक ही भूभाग थे। भूगर्भिक दृष्टि से प्रायद्वीपीय पठार जो पृथ्वी का सबसे प्राचीनतम भूभाग है वह गोण्डवानालैण्ड का ही भाग है।
  2. प्लेट विवर्तन ने भूपर्पटी को अनेक भागों में बाँट दिया। गोण्डवानालैण्ड के भाग के रूप में आस्ट्रेलियन प्लेट उत्तर की ओर प्रवाहित हुआ । परिणामस्वरूप इस टकराव वृहत यूरेशियन प्लेट से हुआ। उत्तर में अंगारालैण्ड तथा दक्षिण में गोण्डवाना लैण्ड के बीच का भाग टेथिस सागर के रूप में उभरा । टकराव से टेथिस भू अभिनति में अवसादों के जमाव के उपर उठने और मुड़ने से हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ।
  3. हिमालय के निर्माण के बाद केटेथिस सागर में अवसादों के निक्षेपण तथा प्रायद्वीपीय पठार के धसने के कारण वृहत् बेसिन का निर्माण हुआ । लाखों वर्षों तक हिमालय की नदियों तथा प्रायदीपीय पठार की नदियों के अवसादों के निक्षेपण से मैदान का निर्माण हुआ । सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों ने एक समतल, उपजाऊ और सघन जलोद अवसादों के निमार्ण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसे उतर के मैदान के नाम से जाना जाता है।

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