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‘कन्यादान’ कविता में माँ ने बेटी को किन परंपराओं से हटकर जीवन जीने की शिक्षा दी है?

माँ ने बेटी को शिक्षा दी कि वह केवल शारीरिक सुंदरता, सुंदर कपड़ों और गहनों की प्राप्ति की ओर ही ध्यान न दे। उसे चाहिए कि वह समाज में आए परिवर्तन को खुली आँखों से देखे और अपने भीतर हिम्मत और साहस को बटोरें। उसके हृदय का साहस और अधिकारों के प्रति जागरूकता ही उसके जीवन को नई दिशा देंगे। इसी से उसके जीवन को रक्षा होगी।
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निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी बह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की


प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज भाग- 2 में संकलित कविता ‘कन्यादान’ से अवतरित किया गया है जिसके रचयिता श्री ऋतुराज हैं। वर्तमान में जीवन मूल्य बदल गए हैं। माँ अपनी बेटी के लिए केवल भावुकता को महत्वपूर्ण नहीं मानती बल्कि अपने संचित अनुभवों की पीड़ा का ज्ञान भी उसे देना चाहती है। वह उसे भावी जीवन का यथार्थ पाठ पढ़ाना चाहती है।

व्याख्या- कवि कहता है कि माँ ने अपना जीवन जीते हुए जिन दुःखों को भोगा था; सहा था उसे अपनी लड़की का विवाह करते हुए कन्यादान के समय वह सब समझाना और उसे इसकी जानकारी देना बहुत अधिक आवश्यक था; सच्चा था। उसकी बेटी ही तो उसकी अंतिम संपत्ति थी। जीवन के सारे सुख-दुःख वह अपनी बेटी के साथ ही तो बांटती थी। चाहे बेटी का विवाह वह कर रही थी पर अभी उसकी बेटी बहुत समझदार नहीं थी, उसने दुनियादारी को नहीं समझा था। वह अभी बहुत भोली और सीधी-सादी थी। वह दुख की उपस्थिति को महसूस तो करती थी लेकिन अभी उसे दुःखों को भली-भांति समझना और पढ़ना नहीं आता था। ऐसा लगता था कि अभी वह धुंधले प्रकाश में जीवन रूपी कविता की कुछ तुकों और कुछ लयबद्‌ध पंक्तियों को पढ़ना ही जानती थी पर उनके अर्थ समझना उसे नहीं आता था अर्थात् वह दुनियादारी की ऊँच नीच को अभी भली-भांति नहीं समझती थी। उसमें चालाकी अभी नहीं आई थी कि वह दुनिया के भेद-भावों को समझ कर स्वयं निर्णय कर पाती।

 
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निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर उसकी सप्रसंग व्याख्या कीजिये:
माँ-ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी पाठ्‌य-पुस्तक क्षितिज भाग- 2 में संकलित कविता कन्यादान’ से ली गई हैं जिसके रचयिता श्री ऋतुराज हैं। कवि ने आधुनिक युग में समाज में आए परिवर्तनों के आधार पर विवाह के समय बेटी को माँ की ओर से शिक्षा दी है; उसे सचेत किया है। आज के बदलते इस समाज में कोरे आदर्शो की कमजोरी का कोई महत्व शेष नहीं बचा है।

व्याख्या- कवि के अनुसार माँ अपनी लड़की को कन्यादान के समय समझाते हुए कहती हैं कि पानी में झाँककर अपने चेहरे की सुंदरता की ओर केवल निहारते न रहना। केवल अपनी सुंदरता और बनाव-शृंगार की ओर ही ध्यान देना ही तुम्हारे लिए पर्याप्त नहीं है बल्कि परछाई दिखाने वाले उस पानी की गहराई के बारे में जान लेना आवश्यक है। जो पानी परछाई दिखाता है और सुंदरता के प्रति तुम्हें आकर्षित करता है, वह डूबकर मृत्यु का कारण भी बन सकता है-उससे सावधान रहना आग केवल रोटियाँ सेंकने के लिए होती है। वह जलने और जलकर मर जाने के लिए नहीं होती-इसलिए उसका शिकार न बनना। नारी जीवन को भ्रम में डालने वाले तरह-तरह के वस्त्र और गहने हैं। ये शाब्दिक धोखे हैं जो स्त्री को जीवन में बांध देने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। माँ ने अपनी लड़की को समझाते हुए कहा कि तुम लड़की बने रहना पर कभी भी लड़की की तरह दिखाई न देना सजग और सचेत रहना। समाज में व्याप्त परिवर्तनों को भली-भांति समझना। यह संसार निर्मम है इसलिए उसे भली-भांति समझना।

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निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी बह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की
अवतरण में निहित भावार्थ स्पष्ट कीजिए।

कवि ने बदल चुकी वर्तमान कालिक समाज-व्यवस्था की ओर संकेत किया है। माँ के जीवन में अब बेटी के विवाह के समय उसके प्रति कोरी भावुकता और प्रेम का भाव नहीं होता बल्कि वह अपनी बेटी को शिक्षा देते समय जीवनभर के इकट्‌ठे अनुभवों की पीड़ा को प्रामाणिक रूप से प्रकट करती है ताकि वह उन अनुभवों से शिक्षा ले और अपने जीवन को सही ढंग से जिए। वह जीवन में कभी कष्ट न उठाए।
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कवि ने कविता के माध्यम से माँ की किस विशेषता को वाणी प्रदान की है?

कवि ने कविता के माध्यम से माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रामाणिकता को प्रस्तुत किया है, माँ ने अपने जीवन में जिन कष्टों को पाया था, उनके कारणों को समझा था। वह नहीं चाहती थी कि उसकी बेटी को कोई कष्ट कभी भी हो।
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