कविता एक ओर जग-जीवन का भा�
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कविता एक ओर जग-जीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ-विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?


यह सही है कि ये दोनों भाव विपरीत प्रतीत होते हैं, पर कवि स्वयं को जग से जोड़कर भी और जग से अलग भी महसूस करता है। उसे यह बात भली प्रकार ज्ञात है कि वह पूरी तरह से जग-जीवन से निरपेक्ष नहीं रह सकता। दुनिया उसे चाहे कितने भी कष्ट क्यों न दे फिर भी वह दुनिया से कटकर नहीं रह सकता। वह भी इसी दुनिया का एक अंग है।

इसके बावजूद कवि जग की ज्यादा परवाह नहीं करता। वह संसार के बताए इशारों पर नहीं चलता। उसका अपना पृथक् व्यक्तित्व है। वह अपने मन के भावों को निर्भीकता के साथ प्रकट करता है और वह इस बात का ध्यान नहीं रखता कि यह जग क्या कहेगा। उसकी स्थिति तो ऐसी है-’मैं दुनिया में हूँ, पर दुनिया का तलबगार नहीं हूँ।’

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जहाँ पर दाना रहते हैं वहीं नादान भी होते हैं-कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?

ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि यह जग स्वार्थी है। जहाँ पर उसे कुछ मिलता है वह वहीं जम जाता है। दाना का अर्थ चतुर, बुद्धिमान भी है। इस दृष्टि से इस पंक्ति का अर्थ हुआ कि जहाँ पर कुछ बुद्धिमान एवं चतुर लोग रहते हैं। वहीं इस संसार में कुछ नादान (मूर्ख) भी मिलते हैं। इस संसार में सभी प्रकार के व्यक्ति मिलते हैं। इस संसार में सभी प्रकार के व्यक्ति मिलते हैं। इस संसार में भाँति-भाँति के प्राणी रहते हैं। ये अच्छे भी है तो बुरे भी। विरोधी होते हुए भी इनका आपस में संबंध है।

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मैं और? और जग और कहाँ का नाता-पंक्ति में और शब्द की विशेषता बताइए।

इस पंक्ति में ‘और’ शब्द के प्रयोग में चमत्कार है। इसका प्रयोग तीन बार हुआ है। ‘मैं और’ से तात्पर्य है कि मैं अन्य लोगों से हटकर हूँ, ‘जग और’-यह संसार और ही प्रकार है। इन दोनों के मध्य आया ‘और’ योजक के रूप में आया है।

‘और’ शब्द दोनों संबंधों के मध्य अंतर को स्पष्ट कर रहा है। कवि स्वयं को समाज से हटकर अलग मानता है। उसमें और समाज में अलगाव है। दोनों में कोई नाता नहीं हैं।

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शीतल वाणी में आग-के होने का क्या अभिप्राय है?

‘शीतल वाणी में आग’ होने का अभिप्राय यह है कि उसकी वाणी में शीतलता भले ही दिखाई देती हो, पर उसमें आग जैसे जोशीले विचार भरे रहते हैं। उसके दिल में इस जग के प्रति विद्रोह की भावना है पर वह जोश में होश नहीं खोता। वह अपनी वाणी में शीतलता बनाए रखता है। यहाँ आग से अभिप्राय कवि की आंतरिक पीड़ा से है। वह प्रिय वियोग की विरह वेदना को हृदय में समाए फिरता है। यह वियोग की वेदना उसे निरंतर जलाती रहती है।

‘शीतल वाणी में आग’ विरोधाभास की स्थिति है। पर यह पूरी तरह विरोधी नहीं है। यहाँ विरोध का आभास मात्र हाेता है।

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बच्चे किस बात की आशा में नीड़ों से झाँक रहे होंगे?


बच्चे इस बात की आशा में नीड़ों (घोंसलों-घरों) से झाँक रहे होंगे कि उनके माँ-बाप लौटकर घर आ रहे होंगे। ये बच्चे भूखे प्यासे होंगे। उन्हें खाने की चीज मिलने की भी प्रतीक्षा होगी। वे सारे दिन अकेले रहकर तंग आ गए होंगे अत: वे अपने माता-पिता से मिलने को उत्सुक होंगे। इसीलिए वे नीड़ों से झाँककर उनके आने की प्रतीक्षा कर रहे होंगे।

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