सिन्धु सभ्यता का पता कैसे चला था
मोहनजोदड़ो कच्ची एवं पक्की ईटों से बने छोटे-बड़े टीलों पर आबाद है। ऐसे ही एक बड़े चबूतरे पर बड़ा बौद्ध स्तुप है। यह स्तुप मोहनजोदड़ो की सभ्यता बिखेरने के बाद एक जीर्ण-शीर्ण टीले पर बना। यह स्तुप पच्चीस फुट ऊँचे चबूतरे पर छब्बीस सदी पुरानी ईटों से बनाया गया था। 1922 में राखलदास बनर्जी ने इसी स्तुप की खोजबीन करने के लिए खुदाई चालू की थी। खुदाई शुरू करने के बाद ही उन्हें इस बात का ज्ञान हुआ कि इन टीलो के नीचे ईसा पूर्व के निशान हैं। बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जॉन मार्शल के निर्देश पर खुदाई का व्यापक अभियान शुरू हुआ। खुदाई होने के साथ ही दुनिया को इस पुरानी सभ्यता के बारे में पता चला।
लेखक राजस्थान और सिन्ध के प्राकृतिक वातावरण का वर्णन करते हुए किस अंतर को स्पष्ट करता है?
लेखक जब सिन्ध में पहुँचता है तो उस समय जाड़े का मौसम था। उस समय दोपहर की कड़ी धूप थी। धूप सारे वातावरण को रंगीन बना रही थी। सिन्ध से रेत के टीले नहीं हैं। खेतों की हरियाली चारो ओर फैली थी। यहाँ का वातावरण लेखक को राजस्थान के वातावरण से मिलता-जुलता लगता है। वहाँ का सारा आकाश, सूना परिवेश, धूल, बबूल और गरमी सब कुछ राजस्थान जैसा ही था। लेखक के केवल धूप के मामले में दोनों जगह में अंतर लगता है। लेखक को लगता है कि सिंध की धूप चौंधियाती है जबकि राजस्थान की धूप पारदर्शी है। यहाँ की फोटो उतारने के लिए कैमरे को सही ढंग से सैट करना जरूरी हो जाता है।
निम्न वर्ग के मकानों के बारे में लेखक का क्या अनुमान है?
लेखक कहता है कि सम्पन्न समाज में वर्ग भी अवश्य रहे होंगे। सिन्धु सभ्यता में ‘उच्च वर्ग’ की बस्ती के साथ ही कामगारों की बस्ती मिलती है। यहाँ टूटे-फूटे घर ही अधिक हैं। लेखक का कहना है कि निम्न वर्ग के घर इतनी मजबूत सामग्री के नहीं रहे होंगे कि पाँच हजार साल टिक सकें। दूसरी बात यह है कि मुख्य बस्ती से उनकी बसावट दूर रही होगी। मुअन जो-दड़ो के दूसरे टीलो की खुदाई बंद हो गई है।
ला-कार्बूजिए और मोहन- जोदड़ो के बीच किस संयोग के बारे में लेखक बताता है?
मोहन-जोदड़ो की सबसे चौड़ी और मुख्य सड़क के दोनों ओर घर हैं। सड़क की ओर घरों की सिर्फ पीठ दिखाई देती है यानि कोई घर सड़क पर नहीं खुलता है। उनके दरवाजे अंदर गलियों में हैं। लेखक उससे जुड़े दिलचस्प संयोग को बताता है। वह कहता है कि ला-काबूर्जिए ने पचास साल पहले चंडीगढ़ में ठीक यही शैली अपनायी है। वहाँ भी कोई घर मुख्य सड़क पर नहीं खुलता। लेखक इसे ही संयोग कहता है। वह इसे मानवीय चेतना का ही विकास कहता है।
सिन्धु सभ्यता की सामाजिक एवं सांस्कृतिक विशेषता क्या है?
विद्वानों ने सिन्धु सभ्यता के सामाजिक वातावरण को बहुत अनुशासित होने का अनुमान व्यक्त किया है। उनका मानना है कि वहाँ का अनुशासन ताकत के बल पर नहीं था। नगर योजना वास्तुशिल्प, मुहर, पानी या साफ-सफाई जैसी सामाजिक व्यवस्था में एकरूपता से यह अनुशासन स्पष्ट होता है। सिन्धु सभ्यता में प्रमुखता या दिखावे का तेवर नहीं है। उसकी यही विशेषता इसको अलग सांस्कृतिक धरातल पर खड़ा करती है। यह धरातल दुनिया की दूसरी सभ्यताओं से अलग है।