कहानी के आधार पर यशोधर प�

यशोधर बाबू अपनी संतानों से असंतुष्ट क्यों रहते थे और वे उनसे क्या चाहते थे?


यशोधर बाबू की संतानों की सोच नये जमाने के हिसाब से थी। उनका बड़ा बेटा भूषण साधारण प्रतिभा का होने के बाद भी बहुत ज्यादा वेतन पाता था। वह घर में अपनी बात मनवा लेता था। दूसरा बेटा आई. ए. एस. की परीक्षा में एक बार सफल होने के बाद भी ज्वाइन नहीं करता है। वह इस बारे में अपने पिता से पूछता भी नहीं है। तीसरा बेटा स्कालरशिप लेकर अमेरिका चला गया था। इसी तरह उनकी बेटी शादी के तमाम प्रस्ताव अस्वीकार कर रही थी। वह डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाने की धमकी देती थी। उनकी सारी संतानें अपने किसी भी मामले में यशोधर जी से सलाह नहीं लेती थी। घर का सारा काम यशोधर जी को ही करना पड़ता था। उन्हें बड़े बेटे द्वारा अलग एकाउंट खोलना भी कहीं न कहीं खलता था। ऐसा न हो पाने के कारण ही यशोधर बाबू अपनी संतानों से असंतुष्ट रहते थे।

उनकी चाहत थी कि उनका मन रखने के लिए ही उनके बेटे उनसे सलाह लिया करें। कोई काम करने से पहले उनसे पूछ लिया करें। उनके परिवार और गरीब रिश्तेदारों के प्रति उपेक्षा का भाव न अपनायें। समाज से जुड़ी परंपराओं के प्रति आदर भाव अपनायें।

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कहानी के आधार पर यशोधर पंत के व्यक्तित्व की विशेषताएँ संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।


यशोधर पंत गृह मंत्रालय में सेक्सन ऑफिसर हैं। वह पहाड़ से दिल्ली आये थे। दिल्ली आने के समय उनकी उम्र बहुत कम थी। कृष्णानंद (किशनदा) पांडे के घर पर रहे थे। वहाँ रहते हुए उनके व्यक्तित्व का विकास हुआ। इस विकास मैं सबसे अधिक प्रभाव किशनदा का था। वह एक कंजूस व्यक्ति भी थे। आफिस में जलपान के लिए तीस रुपये निकाल पाना आफिस वालों के लिए बहुत कठिन था। यशोधर बाबू अपने पद के हिसाब से व्यवहार करने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने यह गुण भी किशनदा से सीखा था। उम्र बढ़ने के साथ यशोधर जी धार्मिकता के रंग में रंगते जा रहे थे। उनकी दिनचर्या मंदिर रजाने के बाद ही समाप्त होती थी। इसी तरह घर में भी पूजा पाठ करते थे। यशोधर बाबू एक सामाजिक व्यक्ति थे। अपनी नौकरी शुरू करने के साथ उन्होंने संयुक्त परिवार अपने साथ रखा था। इसी प्रकार सालों साल तक अपने घर में कुमाऊँनी परंपरा से संबंधित आयोजन भी किया करते थे। उनकी चाहत थी कि उन्हें समाज का सम्मानित व्यक्ति समझा जाये।
यशोधर जी एक असंतुष्ट पिता भी थे। अपनी संतानों के साथ उनका संबंध सामान्य नहीं था। अपने पारिवारिक माहौल से बचने के लिए ही वे जान बूझकर अधिक समय तक घर से बाहर रहने की कोशिश करते थे। उन्हें अपने बेटों का व्यवहार पसंद नहीं है। बेटी के पहनने ओढ़ने को वह सही मानते हैं। उनके बेटे किसी भी मामले में उनसे किसी तरह की राय नहीं लेते हैं। यशोधर बाबू को यही बात बुरी लगती है।।
यशोधर बाबू परंपरावादी व्यक्ति हैं। उन्हें सामाजिक रिश्तों को निभाने में आनंद आता है। अपनी बहन को नियमित तौर पर पैसा भेजते हैं। बीमार जीजा कौ देखने जाने कं बारे में सोचते हैं। आधुनिकता के विरोधी होने के बाद भी उन्हें अपने बेटों की प्रगति अच्छी लगती है। गैस चूल्हा खरीदे जाने पर, फ्रिज खरीदे जाने पर, लड़के की नौकरी आदि लगने पर उनके चेहरे पर चमक आ जाती है। इसके अलावा वे असंतुष्ट पति, मेहनती, परंपरा प्रिय व्यक्ति हैं।

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कहानी के आधार पर सिद्ध कीजिए कि यशोधर बाबू का व्यक्तित्व किशनदा के पूर्ण प्रभाव में विकसित हुआ था। अथवा

‘यशोधर बाबू का व्यक्तित्व किशनदा की प्रतिच्छाया है’ इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? तार्किक उत्तर दीजिए।


कहानी के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि यशोधर बाबू का व्यक्तित्व किशनदा के पूर्ण प्रभाव में विकसित हुआ है। यशोधर बाबू का व्यक्तित्व उन्हीं की प्रतिच्छाया है। यशोधर बाबू बहुत कम उम्र में पहाड़ से दिल्ली आ गये थे। किशनदा जैसे दयालु एवं सामाजिक व्यक्ति ने यशोधर जैसे कई लोगों को अपने घर में आसरा दिया था। यशोधर बाबू की सरकारी विभाग में नौकरी भी उन्होंने ही दिलवायी थी। इस तरह जीवन मे। महत्वपूर्ण योगदान करने वाले व्यक्ति से प्रभावित होना स्वाभाविक था। यशोधर बाबू तो पूरी तरह किशनदा से प्रभावित हो गये। उन्होंने अपने सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन में किशनदा की बातों को उतारना शुरू कर दिया था। ऑफिस में कामकाज, सहयोगियों के साथ संबंध, सुबह सैर करने की आदत. किसी बात को कहकर मुस्कराना, पहनने-ओढ़ने का तरीका, आदर्श संबंधी बातों को दुहराना, किराये के मकान में रहना, रिटायर हो जाने पर गाँव वापस चले जाने की बात आदि सभी पर किशनदा का ही प्रभाव है। कहानी के अंत में जब उनका बड़ा बेटा उन्हें ऊनी गाउन उपहार में देता है. तो यशोधर बाबू को लगता है कि उनके अंग। में किशनदा उतर आया है। इस तरह यह स्पष्ट होता है कि यशोधर बाबू के व्यक्तित्व पर किशनदा का बहुत ज्यादा प्रभाव था।

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कहानी के आधार पर सिद्ध कीजिए कि यशोधर जी की पत्नी समय के साथ बल सकने में सफल हो गयी है।


यशोधर जी की पत्नी अपने बेटों और बेटी के प्रभाव में समय के साथ ढल सकने में सफल हो गयी है। उनके ऊपर किसी और का प्रभाव नहीं था। कहानीकार ने स्पष्ट भी किया है कि यशोधर बाबू की पत्नी अपने मूल संस्कारों से किसी भी तरह आधुनिक नहीं है, तथापि बच्चों की तरफदारी करने की मातृसुलभ मजबूरी ने उन्हें मॉर्डन बना डाला है। यशोधर बाबू को संयुक्त परिवार के दिन बहुत अच्छे लगते हैं, जबकि उस समय को उनकी बीवी अपने जीवन का सबसे खराब दिन मानती है। अपनी बेटी के कहने के हिसाब से जीना सीख लिया है। उसने बगैर बाँह का ब्लाउज पहनना, रसोई से बाहर भात-दाल खा लेना, ऊँची हील की सैंडल पहनना और ऐसे ही पचासों काम अपनी बेटी की सलाह पर शुरू कर दिया है। वह अपने बेटा के किसी भी मामले में दखल नहीं देती है। इससे उनका टकराव उनसे नहीं होता है। वह अपनी ‘सिल्वर वैडिंग’ समारोह में खुशी से केक काटती है। मेहमानों का स्वागत खुलकर करती है। वह अपने बेटों और बेटी की सोच की तरफदारी भी करती है। इस तरह हम कह सकते हैं कि वह समय के साथ ढल गयी है।

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किशनदा का बुढ़ापा सुखी क्यों नहीं रहा था?


किशनदा आजीवन अविवाहित रहे थे। नौकरी करते हुए वे सरकारी क्वार्टर में ही रहे। पैसा जोड़कर घर बनवाने की बात उन्होंने कभी नहीं सोची थी। उनके तमाम साथियों ने हौजखास, ग्रीनपार्क, कैलाश कहीं न कहीं जमीन लेकर मकान बनवा लिया था। रिटायर हो जाने व? छह महीने बाद ही उन्हें क्वार्टर खाली कर देना पड़ा। किशनदा बाबू ने अपने जीवन में ढेर सारे लोगों को लाभ पहुँचाया था। कई लोगों ने उनके बल पर जिंदगी शुरू की थी। वे सभी किशनदा को हर तरह से भूल चुक थे। उन्होंने किशनदा को एक बार भी नहीं पूछा था। यशोधर बाबू भी अपने परिवार की मजबूरियों के कारण उन्हें अपने घर में नहीं रख सके। किशनदा कुछ साल किराये पर रहने के बाद अपने गाँव लौट गये। इस तरह वे हर तरह से अकेले पड़ गये। गाँव जाने के साल भर में उनकी मौत हो गयी जबकि उन्हें किसी तरह की बीमारी नहीं हुई थी।

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