भाई के बुलाने पर घर लौटत�
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मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में ढेला क्यों फेंकती थी?

मक्खनपुर पढ़ने जाने वाले बच्चों की टोली पूरी वानर टोली थी। उन बच्चों को पता था कि कुएँ में साँप है। वे ढेला फेंककर कुएँ में से आने वाली उसकी क्रोधपूर्ण फुँफकार सुनने में मजा लेते थे। कुएँ में ढेला फेंककर उसकी आवाज तथा उससे सुनने के बाद अपनी बोली की प्रतिध्वनि सुनने की लालसा उनके मन में रहती थी।
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साँप का ध्यान बाँटने के लिए लेखक ने क्या-क्या युक्तियाँ अपनाई?

साँप का ध्यान बाँटने के लिए लेखक ने निम्नलिखित युक्तियाँ अपनाईं-
- उसने डंडे से साँप को दबाने का ख्याल छोड़ दिया।
- उसने साँप का फन पीछे होते ही अपना डंडा चिट्‌ठियों की ओर कर दिया और लिफाफा उठाने की चेष्टा की।
- डंडा लेखक की ओर खींच आने से साँप के आसन बदल गए और वह चिट्‌ठियाँ चुनने में कामयाब हो गया।

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‘साँप ने फुसकार मारी या नहीं, ढेला उसे लेगा या नहीं, यह बात अब तक स्मरण नहीं'- यह कथन लेखक की किस मनोदशा को स्पष्ट करता है?

यह घटना 1908 में घटी थी और लेखक ने इसे अपनी माँ को 1915 में सात साल बाद बताया था। जब तक वह इसे लिखा होगा और भी समय बीत चुका होगा। लेखक ने जब ढेला उठाकर कुएँ में साँप पर फेंका तब टोपी में रखी चिट्‌ठी कुँए में गिर गया इससे लेखक पर बिजली सी गिरी। वह बुरी तरह घबरा गया था। उसे निराशा, पिटने का भय और घबराहट हो रही थी। वह अपने होश खो बैठा था। उसे ठीक से यह भी याद नहीं कि जब उसने कुएँ में ढेला फेंका था तब साँप ने फुँफकार मारा या नहीं, उसका फेंका ढेला साँप को लगी या नहीं। इससे उसकी घबराहट झलकती थी।
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भाई के बुलाने पर घर लौटते समय लेखक के मन में किस प्रकार का डर था?


जब लेखक झरबेरी से बेर तोड़ रहा था तभी गाँव के एक आदमी ने पुकार कर कहा कि तुम्हारे भाई बुला रहे हैं, शीघ्र चले आओ। भाई के बुलाने पर लेखक घर की ओर चल दिया पर उसके मन में डर था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उससे कौन सा कसूर हो गया। उसे आशंका थी कि कहीं बेर खाने के अपराध में उसकी पेशी न हो रही हो। उस बड़े भाई की मार का डर था।
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किन कारणों से लेखक ने चिट्‌ठियों को कुएँ से निकालने का निर्णय लिया?

लेखक को चिट्‌ठियाँ बड़े भाई ने दी थीं। यदि वे डाकखाने में नहीं डाली जातीं तो घर पर मार पड़ती। सच बोलकर पिटने का भय और झूठ बोलकर चिट्‌ठियों के न पहुँचने की जिम्मेदारी के बोझ से दबा वह बैठा सिसक रहा था। वह झूठ भी नहीं बोल सकता था। चिट्‌ठियाँ कुएँ में गिरी पड़ी थीं। उसका मन कहीं भाग जाने को करता था फिर पिटने का भय और जिम्मेदारी की दुधारी तलवार कलेजे पर फिर रही थी। उसे चिट्‌ठियाँ बाहर निकाल कर लानी थीं। अंत में उसने कुएँ से चिट्‌ठियाँ निकालने का निर्णय कर ही लिया।
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