उपभोक्ताओं के शोषण का कारण बनने वाले कारकों का उल्लेख नीचे दिया गया है:
(i) कुटिलता और भ्रष्टाचार: शुल्क, जमाखोरी, मिलावट, काला बाज़ारी , कम वजन आदि।
(ii) लापरवाही और झूठी सूचना: अस्पतालों में चिकित्सकों / सर्जनों और अन्य स्टाफ सदस्यों की लापरवाही, स्कूल में प्रिंसिपल / शिक्षकों की लापरवाही और सभी सरकारी कार्यालयों में सरकारी अधिकारी की लापरवाही से उपभोक्ताओं का शोषण होता है।
(iii) उपभोक्ताओं को माल या उत्पादों के बारे में सीमित और गलत जानकारी दी जाती है। जिससे उपभोक्ता गलत विकल्प का चुनाव करते हैं परिणामस्वरूप उनका शोषण होता है।
(iv) कम साक्षरता: उपभोक्ता शोषण की ओर जाता है क्योंकि उन्हें उत्पादों के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती है।
(v) यदि उत्पाद के एक या कुछ उत्पादक हैं, तो कीमतों में आपूर्ति और आपूर्ति में हेरफेर की संभावना है।
अपने अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए उपभोक्ता को निम्नलिखित कर्तव्यों का पालन कारण चाहिए।(i) खरीदी जाने वाली वस्तुओं की गुणवत्ता देखनी चाहिए।
(ii) गारंटी और खरीददारी के बाद सेवा संबंधी रसीद और नकद भुगतान रसीद अवश्य लेनी चाहिए।(iii) वस्तुओं पर गुणवत्ता के प्रतीक निशानों जैसे आई. एस. आई. एग्मार्क, हॉलमार्क आदि देखने चाहिए।
(iv) बेईमान, धोकेबाज़, उत्पादकों, व्यापारियों, दुकानदारों तस्करों, जमाखोरों, अधिक कीमत लेने वालों की शिकयात पुलिस और उपभोक्ता न्यायालय में अवश्य करनी चाहिए।
(v) उपभोक्ता संगठन का सदस्य बनना चाहिए। सरकार द्वारा गठित कमेटियों में अपने प्रतिनिधि भेजने की कोशिश करनी चाहिए।
(i) बाज़ार में उपभोक्ता को शौषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी। लम्बे समय तक, जब एक उपभोक्ता एक विशेष ब्रांड उत्पाद या दुकान से संतुष्ट नहीं होता था तो सामान्यतः वह उस ब्रांड उत्पाद को खरीदना बंद कर देता था या उस दुकान से खरीददारी करना बंद कर देता था ।
(ii) यह मान लिया जाता था कि यह उपभोक्ता की जिम्मेदारी है कि एक वस्तु या सेवा को खरीदते वक्त वह सावधानी बरते। भारत में 'सामाजिक बल' के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म, अनैतिक और अनुचित व्यवसाय कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के साथ हुआ।
(iii) अत्यधिक खाद्य कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल में मिलावट की वजह से 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ।
(iv) 1970 के दशक तक उपभोक्ता संस्थाएँ वृहत् स्तर पर उपभोक्ता अधिकार से सम्बंधित आलेखों के लेखन और प्रदर्शनी का आयोजन का कार्य करने लगीं थीं। उन्होंने सड़क यात्री परिवहन में अत्यधिक भीड़-भाड़ और राशन दुकानों में होने वाले अनुचित कार्यों पर नज़र रखने के लिए उपभोक्ता दाल बनाया। हाल में, भारत में उपभोक्ता दलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई हैं।
(v) इन सभी प्रयासों के परिणामस्वरूप, यह आंदोलन वृहत् स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों और सरकार दोनों पर दवाब डालने में सफल हुआ। 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया। यह उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 कानून का बनना था, जो कोपरा ने नाम से प्रसिद्ध है।
उपभोक्ता जागरूकता की आवश्यकता इसलिए महसूस की गई क्योंकि अपने स्वार्थ के चलते निर्माता और व्यापारी किसी भी हद तक जा सकते थे। वस्तुओं की कृत्रिम मांग बनाने के लिए वे आवश्यक वस्तुओं को अपने पास भण्डारित करके रख सकते थे।
(i) एक कंपनी ने यह दावा करते हुए कि माता के दूध से हमारा उत्पाद बेहतर है, सर्वाधिक वैज्ञानिक उत्पाद के रूप में शिशुओं के लिए दूध का पाउडर पुरे विश्व में कोई वर्षों तक बेचा। कई वर्षों के लगातार संघर्ष के बाद कंपनी को यह स्वीकार करना पड़ा कि वह झूठे दावे करती आ रही थी।
(ii) इसी तरह, सिगरेट उत्पादक कंपनियों से यह बात मनवाने के लिए कि उनका उत्पाद कैंसर का कारण हो सकता है, न्यायालय में लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी।
(i) भारत में 'सामाजिक बल' के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का जन्म, अनैतिक और अनुचित व्यवसाय कार्यों से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और प्रोत्साहित करने की आवश्यकता के साथ हुआ।
(ii) अत्यधिक खाद्य कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेल में मिलावट की वजह से 1960 के दशक में व्यवस्थित रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय हुआ।
(iii) 1970 के दशक तक उपभोक्ता संस्थाएँ वृहत् स्तर पर उपभोक्ता अधिकार से सम्बंधित आलेखों के लेखन और प्रदर्शनी का आयोजन का कार्य करने लगीं थीं। उन्होंने सड़क यात्री परिवहन में अत्यधिक भीड़-भाड़ और राशन दुकानों में होने वाले अनुचित कार्यों पर नज़र रखने के लिए उपभोक्ता दाल बनाया। हाल में, भारत में उपभोक्ता दलों की संख्या में भारी वृद्धि हुई हैं।
(iv) इन सभी प्रयासों के परिणामस्वरूप, यह आंदोलन वृहत् स्तर पर उपभोक्ताओं के हितों के खिलाफ और अनुचित व्यवसाय शैली को सुधारने के लिए व्यावसायिक कंपनियों और सरकार दोनों पर दवाब डालने में सफल हुआ।
(v) 1986 में भारत सरकार द्वारा एक बड़ा कदम उठाया गया। यह उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम, 1986 कानून का बनना था, जो कोपरा ने नाम से प्रसिद्ध है।