भारत में निर्धनता रेखा क
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भारत में निर्धनता रेखा का आकलन कैसे किया जाता है ?


(i) निर्धनता के आकलन के लिए एक सर्वमान्य सामान्य विधि आय अथवा उपभोग स्तरों पर आधारित है। किसी व्यक्ति को निर्धन माना जाता है, यदि उसकी आय या उपभोग स्तर किसी को 'न्यूनतम स्तर' से नीचे गिर जाये जो मूल आवश्यकताओं के एक दिए हुए समूह को पूर्ण करने के लिए आवश्यक है।

(2) भारत में निर्धनता रेखा का निर्धारण करते समय जीवन निर्वाह के लिए खाद्य आवश्यकता, कपड़ों, जूतों, ईंधन और प्रकाश, शैक्षिक एवं चिकित्सा सम्बन्धी आवश्यकताओं आदि पर विचार किया जाता है।

(3) निर्धनता रेखा का आकलन करते समय खाद्य आवश्यकता के लिए वर्तमान सूत्र वांछित कैलोरी आवश्यकताओं पर भी आधारित है। भारत में सवीकृत कैलोरी आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रतिव्यक्ति प्रति दिन एवं नगरीय क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रतिव्यक्ति प्रति दिन है।

उदाहरण स्वरुप वर्ष 2000 में किसी व्यक्ति के लिए निर्धनता रेखा का निर्धारण ग्रामीण क्षेत्रों में ₹ 454 प्रतिमाह किया गया था।

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क्या आप समझते हैं कि निर्धनता आकलन का वर्तमान तरीका सही है?


नहीं, गरीबी के आकलन की वर्तमान पद्धति उपयुक्त नहीं है।

यह केवल एक मात्रात्मक अवधारणा है । लोगों के लिए निर्धनता की आधिकारिक परिभाषा उनके केवल एक सीमित भाग पर लागू होती है। यह न्यूनतम जीवन निर्वाह के 'उचित' स्तर की अपेक्षा जीवन निर्वाह के 'न्यूनतम' स्तर के विषय में है।

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भारत में 1973 से निर्धनता की प्रवृत्तियों की चर्चा करें ।   


निर्धनता अनुपात (प्रतिशत) निर्धनों की संख्या (करोड़)  
वर्ष  ग्रामीण  शहरी   योग  ग्रामीण  शहरी संयुक्त योग    
1973-74 56.4 49.0 54.9 26.1 6.0 32.1
1993-94 37.3 32.4 36.0 24.4 7.6 32.0
1999-2000 27.1 23.6 26.1 19.3 6.7 26.0


(i) भारत में निर्धनता अनुपात में वर्ष 1973 में लगभग 55 प्रतिशत से वर्ष 1993 में 36 प्रतिशत तक महत्वपूर्ण गिरावट आयी है।  

(ii) गरीबी रेखा से नीचे के लोगों का अनुपात 2000 में करीब 26 प्रतिशत नीचे आ गया।

(iii) यदि प्रवृत्ति जारी है, तो गरीबी रेखा के नीचे वाले लोग अगले कुछ वर्षों में 20 प्रतिशत से भी कम कर सकते हैं।

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भारत में निर्धनता में अंतर-राज्य असमानताओं का एक विवरण प्रस्तुत करें। 


भारत में गरीबी के प्रमुख कारण नीचे दिए गए है: 

(i) एक ऐतिहासिक कारण ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन के दौरान आर्थिक विकास का निम्न स्तर हैं।

(ii) औपनिवेशिक सरकार की नीतियों ने पारम्परिक हस्तशिल्प्कारी को नष्ट कर दिया और वस्त्र जैसे उद्योगों के विकास को हतोत्साहित किया।

(iii) सिंचाई और हरित क्रांति के प्रसार से कृषि क्षेत्रक में रोज़गार के अनेक अवसर सृजित हुए। लेकिन इनका प्रभाव भारत के कुछ स्थानों तक ही सीमित रहा।

(iv) उच्च निर्धनता दर की एक और विशेषता आय असमानता रही है। इसका एक प्रमुख कारण भूमि और अन्य संसाधनों का असमान वितरण है

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उन सामाजिक और आर्थिक समूहों की पहचान करें जो भारत में निर्धनता के समक्ष निरुपाय हैं।  


 
सामाजिक समूह: 
(i) अनुसूचित जाति के परिवार 
(ii) अनुसूचित जनजाति के परिवार

आर्थिक समूह: ग्रामीण कृषि श्रमिक परिवार तथा नगरीय अनियत मजदूर परिवार ।

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