यह पोस्टर भोजन अधिकार अभियान द्वारा बनाया गया है।
इस पोस्टर को पढ़ कर भोजन के अधिकार के बारे में सरकार के दायित्वों की सूची बनाइए।
इस पोस्टर में कहा गया है कि 'भूखे पेट भरे गोदाम! नहीं चलेगा, नहीं चलेगा !' इस व्यक्तव्य को पृष्ठ 61 पर भोजन के अधिकार के बारे में दिए गए चित्र निबंध से मिला कर देखिए।
(i) नागरिकों के भोजन के अधिकार के बारे में सरकार के निम्न दायित्व है:
(क) प्रत्येक व्यक्ति को भोजन उपलब्ध कराना।
(ख) यह सुनिश्चित करना कि किसी भी व्यक्ति को भूखा न सोना पड़े।
(ग) भूख की मार सबसे ज्यादा झेलने वाले बेसहारा, बुजुर्ग, विकलांग विधवा आदि पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
(घ) सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि कुपोषण एवं भूख से किसी भी मृत्यु न हो।
(ii) 'भूखे पेट, भरे गोदाम! नहीं चलेगा, नहीं चलेगा!!' यह व्यक्तव्य पृष्ठ संख्या 65 पर दिए गए चित्र निबंध 'भोजन का अधिकार' निश्चित रूप से संबंधित है। चित्र में हम देख सकते हैं कि राजस्थान और उड़ीसा में सूखे कि वजह से लाखों लोगों के सामने भोजन का भारी आभाव पैदा हो गया था। जबकि सरकारी गोदाम अनाज से भरे पड़े थे। इस स्थिति को देखते हुए पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पि.यू.सी.एल.) नमक एक संगठन ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की।
याचिका में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद में दिए गए जीवन के मौलिक अधिकारों में भोजन का अधिकार भी शामिल है। राज्य की इस दलील को भी गलत साबित कर दिया गया कि उसके पास संसाधन नहीं है क्योंकि सरकारी गोदाम अनाज से भरे हुए थे। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को आदेश दिया कि वह नए रोजगार पैदा करे। राशन की सरकारी दुकानों के जरिए सस्ती दर पर भोजन उपलब्ध कराए और बच्चों को स्कूल में दोपहर का भोजन दिया जाए।
अध्याय 1 में मौलिक अधिकारों की सूची दी गई है उसे फिर से पढ़ें। आपको ऐसा क्यों लगता है कि संवैधानिक उपचार का अधिकार न्यायिक समीक्षा के विचार से जुड़ा हुआ है?
संवैधानिक उपचार का अधिकार न्यायिक समीक्षा के विचार से जुड़ा हुआ है क्योंकि दोनों ही इस विचार पर सहमत है कि यदि संसद द्वारा पारित किया गया कोई भी कानून संविधान के आधारभूत ढांचे का उल्लंघन करता है तो वह उस कानून को रद्द कर सकती हैl
नीचे तीनों स्तर के न्यायालय को दर्शाया गया हैl प्रत्येक के सामने लिखिए कि उस न्यायालय में सुधा गोयल के मामले में क्या फ़ैसला दिया थाl अपने जवाब को कक्षा के अन्य विद्यार्थियों द्वारा दिए गए जवाबों के साथ मिलकर देखेंl
सुधा गोयल के मामले में तीनों स्तर के न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले इस प्रकार है-
निचली अदालत- निचली अदालत ने लक्ष्मण, उसकी मां शकुंतला और उनके जेठ सुभाष चंद्र को दोषी ठहराया और तीनों को मौत की सजा सुनाई।
उच्च न्यायालय- उच्च न्यायालय ने लक्ष्मण, शकुंतला और सुभाष चंद्र को निर्दोष बतायाl
सर्वोच्य न्यायालय- सर्वोच्य न्यायालय ने लक्ष्मण और उसकी मां को दोषी ठहराया और उन्हें उम्रकैद कि सजा दीl लेकिन सुभाष को बरी कर दिया क्योंकि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थेl
आरोपी इस मामले को उच्चन्यालय लेकर गए क्योंकि वे निचली अदालत के फैसले से सहमत नहीं थेl
आप पढ़ चुके है की 'कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना' न्यायपालिका का मुख्य काम होता है आपकी राय में इस महत्वपूर्ण काम को करने के लिए न्यायपालिका का स्वतंत्र होना क्यों ज़रूरी है?
'कानून को कायम रखना और मौलिक अधिकारों को लागू करना' न्यायपालिका का मुख्य काम होता हैl इस महत्वपूर्ण काम को करने के लिए न्यायपालिका का स्वतंत्र होना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि नेताओं का न्यायधीश पर जो नियंत्रण रहता है उसकी वजह से न्यायधीश स्वतंत्र रूप से फ़ैसला नहीं ले पातेl स्वतंत्रता का आभाव न्यायधीश को इस बात के लिए मजबूर कर देगा कि वह हमेशा नेता के पक्ष में ही फैसला सुनाए लेकिन भारतीय संविधान में इस तरह की दखलअंदाजी को स्वीकार नहीं किया गया हैl न्यायपालिका नागरिको के मौलिक अधिकारियो की रक्षा में भी अहम भूमिका निभाती है क्योंकि अगर किसी को भी लगता है की उसके अधिकारो का उलंघन हो रहा है तो वह अदालत में जा सकता है फिर चाहे वह सेठ हो या गरीब व्यक्ति होl