हमारे संविधान को दिशा दे
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1912 में प्रकाशित 'विवाहित महिलाओं के आचरण' पुस्तक के निम्नलिखित अंश को पढ़ें-
'ईश्वर ने औरत जाति को शारीरिक तथा भावनात्मक दोनों ही तरह से ज़्यादा नाज़ुक बनाया है। उन्हें आत्म रक्षा के भी योग्य नहीं बनाया है। इसलिए ईश्वर ने उन्हें जीवन भर पुरुषों के संरक्षण में रहने का भाग्य दिया है- कभी पिता के, कभी पति के और कभी पुत्र के। इसलिए महिलाओं को निराश होने की जगह इस बात से अनुग्रहित होना चाहिए कि वे अपने आपको पुरषों की सेवा में समर्पित कर सकती हैं।'

क्या इस अनुच्छेद में व्यक्त मूल्य संविधान के दर्शन से मेल खाते हैं या वे संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ हैं?


इस पाठ्यांश में व्यक्त मूल्य हमारे संविधान में अंतनिर्हित मूल्यों को प्रदर्शित नहीं करते। यह हमारे संवैधानिक मूल्यों के विपरीत है, क्योंकि हमारा संविधान पुरुष तथा महिला को हर दृष्टिकोण से समान मानता है।

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भारत के लोकतंत्र के स्वरुप में विकास के प्रमुख कारणों के बारे में कुछ अलग-अलग विचार इस प्रकार हैं। आप इनमें से हर कथन को भारत में लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए कितना महत्वपूर्ण कारण मानते हैं?

(क) अंग्रेज़ शासकों ने भारत को उपहार के रूप में लोकतांत्रिक व्यवस्था दी। हमने ब्रिटिश हुकूमत के समय बनी प्रांतीय असेंबलियों के ज़रिये लोकतांत्रिक व्यवस्था में काम करने का प्रशिक्षण पाया।

(ख) हमारे स्वतंत्रता संग्राम ने औपनिवेशिक शोषण और भारतीय लोगों को तरह-तरह की आज़ादी न दिए जाने का विरोध किया। ऐसे में स्वतंत्र भारत को लोकतंत्र होना ही था।

(ग) हमारे राष्ट्रवादी नेताओं की आस्था लोकतंत्र में थी। अनेक नव स्वतंत्र राष्ट्र में लोकतंत्र का ना आना हमारे नेताओं की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।


(क) इस कारक के योगदान को काफी हद तक स्वीकार किया जा सकता है। हालाँकि इसे अंग्रेज़ों की देन नहीं माना जा सकता है। यह सच है कि यदि हमें पूर्व प्रशिक्षण प्राप्त नहीं होता तो भारत जैसे विशाल देश में आरंभिक दौर में लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना बहुत ही मुश्किल होती।
(ख) इस कारक का भी भारत में लोकतंत्र की स्थापना में योगदान रहा है। क्योंकि हमारे संघर्ष का तरीका, हमारे राजनीतिक दलों की संरचना सभी लोकतांत्रिक थी, अत: लोकतंत्र की अच्छाइयों को हम महसूस कर रहे थे। दूसरी तरफ, चूँकि लोगों को विभिन्न स्वतंत्रताएँ नहीं मिली थीं, अत: लोकतंत्र ही एकमात्र व्यवस्था थी जो उनकी इन आकांक्षाओं को पूरा कर सकती थी।
(ग) स्वतंत्रता प्राप्ति के नाजुक दौर में यह बहुत ज़रूरी था कि सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए निष्ठावान लोकतांत्रिक विचारों वाले नेता हों ताकि इन मूल्यों की स्थापना के लिए वे दूसरों को भी प्रेरित कर सकें। अत: इस कार्य का योगदान भी महत्वपूर्ण था। 

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कुछ दिन पहले नेपाल से आपके एक मित्र ने वहाँ की राजनीतिक स्थिति के बारे में आप को पत्र लिखा था । वहाँ अनेक राजनीतिक पार्टियाँ राजा के शासन का विरोध कर रही थीं। उनमें से कुछ का कहना था कि राजा द्वारा दिए गए मौजूदा संविधान में ही संशोधन करके चुने हुए प्रतिनिधियों को ज़्यादा अधिकार, दिए जा सकते हैं। अन्य पार्टियाँ नया गणतांत्रिक संविधान बनाने के लिए नई संविधानसभा गठित करने की मांग कर रही थीं। इस विषय में अपनी राय बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखें।


इस संबंध में हमारे सामने दो विचार रखे गए हैं। पहले विचार के अनुसार चुने हुए जनप्रतिनिधियों को अधिक शक्ति दी जानी चाहिए ताकि संपूर्ण व्यवस्था को अधिक से अधिक जनतांत्रिक बनाए जा सके। दूसरा समूह राजशाही को खत्म कर इसकी जगह नए गणतांत्रिक संविधान के निर्माण की बात कर रहा है । मेरे विचार में अचानक कोई बड़ा परिवर्तन संघर्ष को जन्म देता है। अत: पता पहले कुछ वर्षों के लिए ब्रिटेन की तरह वहाँ भी एक संवैधानिक गणतंत्र की स्थापना होनी चाहिए। किंतु, इस गणतंत्र में राजा की भूमिका सिर्फ परामर्शदाता की हो। अत: वर्तमान संविधान में उपयुक्त संशोधन ही नेपाल के हित में सही फैसला होगा।

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निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए। क्या आप हमसे सहमत हैं? अपने कारण भी बताइए।
(क) संविधान के नियमों की हैसियत किसी भी अन्य कानून के बराबर है।
(ख) संविधान बताता है कि शासन व्यवस्था के विविध अंगों का गठन किस तरह होगा।
(ग) नागरिकों के अधिकारों और सरकार की सत्ता की सीमाओं का उल्लेख भी संविधान में स्पष्ट रूप में है।
(घ) संविधान संस्थाओं की चर्चा करता है, उसका मूल्यों से कुछ लेना-देना नहीं है।


(क) यह वक्तव्य सत्य नहीं है, क्योंकि संवैधानिक नियम मौलिक नियम हैं, जबकि दूसरे अन्य नियमों की वैधानिकता इस आधार पर तय होती है कि वे संवैधानिक नियमों के अनुरूप हैं अथवा नहीं।
(ख) यह कथन सत्य है, क्योंकि हमारे संविधान में सरकार के तीन अंगों -विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के संगठन तथा शक्ति की विस्तृत चर्चा की गई है।
(ग) यह व्यक्तव्य सही है, क्योंकि हमारे संविधान में नागरिकों को दिए गए विभिन्न मौलिक अधिकारों के लिए उपबंध किए गए हैं। साथ ही, सरकार की क्या शक्तियाँ तथा सीमाएँ हैं, इसकी भी विस्तृत चर्चा की गई है।
(घ) यह व्यक्तव्य गलत है, क्योंकि संविधान जिन मूल्यों पर आधारित है उनकी चर्चा संविधान की प्रस्तावना में की गई है तथा प्रस्तावना हमारे संविधान का हिस्सा है।

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हमारे संविधान को दिशा देने वाले ये कुछ मूल्य और उनके अर्थ हैं। इन्हें आपस में मिलाकर दोबारा लिखिए।
(क) संप्रभु                     (1) सरकार किसी धर्म के निर्देशों के अनुसार काम नहीं करेगी।
(ख) गणतंत्र                   (2) फैसले लेने का सर्वोच्च अधिकार लोगों के पास है।
(ग) बंधत्व                     (3) शासन प्रमुख एक चुना हुआ व्यक्ति है।
(घ) धर्मनिरपेक्ष                (4) लोगों को आपस में परिवार की तरह रहना चाहिए। 


(क) संप्रभु  - जनता के पास फैसला करने का सर्वोच्च अधिकार है।
(ख) गणतंत्र - राज्य का प्रमुख एक चुना हुआ व्यक्ति है।
(ग) बंधुता - जनता भाई-बहनों की तरह रहे।
(घ) धर्मनिरपेक्ष - सरकार किसी भी धर्म का पोषण नहीं करेगी।

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